
फिल्म की कहानी
गोवा के अमीर बिजनेसमैन रोजारियो (परेश रावल) का एक ही ख्वाब होता है.. कि उसकी दोनों बेटियों की शादी करोड़पति लड़कों से हो जाए। पंडित जय किशन (जावेद जाफरी) उनकी बेटी सारा (सारा अली खान) के लिए एक रिश्ता लेकर आते हैं, लेकिन उन्हें बदले में अपमानित होना पड़ता है। रोजारिया के हाथों हुए अपमान के बाद पंडित जय किशन धोखे से रोजारियो के बेटी सारा की शादी राजू (वरुण धवन) नामक कुली से करा देता है। शादी करने के लिए राजू नाम बदलकर करोड़पति कुंवर महेन्द्र प्रताप सिंह बनने का नाटक रचता है। लेकिन जल्द ही उसकी असलियत सबके सामने आ जाती है। इसके बाद वह एक और कहानी बुनता है- जुड़वा भाई की। सारा से शादी बचाए रखने के लिए वह एक झूठ से दूसरा, दूसरे से तीसरा बोलता जाता.. लेकिन धीरे धीरे मामला उसके हाथों से निकल जाता है और वो एक बड़ी मुसीबत में फंस जाता है।

इंटरटेनमेंट की भारी कमी
90 के दशक में इस कहानी से मनोरंजन के अलावा एक जुड़ाव भी लगता था। 2020 में भी यह 1995 में ही सिमट कर रह जाती है। फिल्म में कोरोना को लेकर बातें हो रही हैं, सभी स्मार्टफोन लेकर घूम रहे हैं.. ऐसे में यह बात बेतुकी लगती है कि कोई आपको इतनी आसानी से बेवकूफ बना जाता है। किसी के मोटापे, रंग रूप या पहनावे का मजाक उड़ाने वाली कॉमेडी से बॉलीवुड अब धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है। लेकिन कुली नंबर वन अभी भी वहीं अटकी है। जाहिर है यह निराशाजनक है।

निर्देशन
कोई और आपकी फिल्म की रीमेक बनाए और उसे बिगाड़ डाले.. उससे बेहतर है कि खुद ही यह जिम्मा उठाया जाए। निर्देशक डेविड धवन भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। पहले जुड़वा और अब कुली नंबर वन। हर फिल्म का अपना समय होता, अपना एक मूड होता है। ऐसे में डेविड धवन ने अपनी ही फिल्म की रीमेक के साथ इंसाफ नहीं किया है। 1995 से 2020.. 25 सालों के फर्क को देखते हुए फिल्म में कुछ तब्दीली की जरूरत थी, लेकिन पटकथा को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया।

अभिनय
राजू/ कुंवर महेन्द्र प्रताप सिंह के किरदार में वरुण धवन ने इंटरटेन करने की पूरी कोशिश की है। उनकी कॉमेक टाइमिंग अच्छी है। कुछ दृश्यों को छोड़ दिया जाए तो वह इस किरदार को निभाने में सफल भी रहे हैं। गोविंदा से लगातार होती तुलना के बीच भी वरुण में एक मासूमियत है, जो पर्दे पर दिखती है। शायद यही वजह होगी कि उनके पिता निर्देशक डेविड धवन ने फिल्म में किसी और किरदार को उभरने का मौका ही नहीं दिया। अटपटे डायलॉग्स में फंसे परेश रावल, मुख्य तौर पर सिर्फ गानों का हिस्सा रहीं सारा अली खान हो या मामा बने राजपाल यादव.. साफ तौर पर कोई किरदार भी मजबूती से बुना नहीं गया था। जावेद जाफरी, साहिल वैद्य और शिखा तलसानिया ने अपने छोटे किरदारों के साथ न्याय किया है और प्रभावी रहे हैं।

तकनीकि पक्ष
तकनीकि मामले में फिल्म काफी औसत है। कुछ एक दृश्यों में वीएफएक्स इतने बचकाने हैं, कि आपको हैरत हो सकती है। खासकर जब एक सीन में वरुण धवन रेलवे ट्रैक पर बैठे बच्चे को ट्रेन से बचाते हैं। रवि के चंद्रन की सिनेमेटोग्राफी भी औसत लेखन और निर्देशन से फिल्म को बचा नहीं पाती है। फिल्म के संवाद लिखे हैं फरहाद सामजी ने.. हालांकि ज्यादातर डायलॉग्स पिछली फिल्म से ही जस के तस उठाए गए हैं।

संगीत
गानों की बात करें तो 1995 की कुली नंबर वन के कुछ चार्टबस्टर गानों को रिक्रिएट किया गया है। संगीत कंपोज किया है तनिष्क बागची ने। तीन नए गाने भी हैं, लेकिन कोई प्रभावी नहीं हैं, ना ही फिल्म खत्म होने के बाद याद रहते हैं।

क्या अच्छा क्या बुरा
वरुण धवन, शिखा तलसानिया, जावेद जाफरी, राजपाल यादव ने अपने किरदारों को पूरी सच्चाई के साथ निभाने की कोशिश की है। लेकिन औसत निर्देशन और घिसे पिटे संवाद फिल्म को ऊबाऊ बनाते हैं। गानों के लिए बनाए गए बड़े बड़े सेट की जगह शायद फिल्म को 5 प्रतिशत भी प्रासंगिक बनाने की कोशिश की जाती तो, इसे मसाला इंटरटेनमेंट माना जा सकता था।

देंखे या ना देंखे
यदि आप 90s किड हैं, तो कतई यह रिस्क ना लें। वरुण धवन के फैन हैं और मसाला इंटरटेनमेंट के नाम पर एक चांस लेना चाहते हैं, तो कुली नंबर एक बार देखी जा सकती है। फिल्मीबीट की ओर से कुली नंबर वन को 1.5 स्टार।