Paagal Review: फिल्म की शुरुआत में हीरो कहता है कि मुझे आज तक 1600 लड़कियों से प्यार हुआ है. कैसा भौंडा मज़ाक है जो फिल्म में कॉमेडी और रोमांटिक एंगल के नाम पर डाला गया है. तेलुगु फिल्म ‘पागल’ निहायत ही अजीब से कथानक को लेकर चलती है. ऐसी फिल्में देख कर लगता है कि कहानी लिखने वाले की अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे और वो एक ऐसी अजीब सी समस्या को लेकर कहानी रच रहा है जो आज के जमाने में होती नहीं है या फिर एक वहशी और पागल प्यार की कहानी होती है. ये फिल्म इतनी मज़ेदार बन सकती थी कि हीरो अपने असफल प्रेम संबंधों की कहानियां सुनाता और दर्शक उसके साथ प्यार, धोखा और दर्द सब फील करते लेकिन ‘पागल’ने सभी देखने वालों को पागल समझा है.
एक बच्चे को उसकी मां सबसे ज़्यादा और सबसे निश्छल प्रेम करती है. क्या वो ये प्यार किसी और शख्स में ढूंढ सकता है? फिल्म पागल का हीरो प्रेम (विश्वाक सेन) जाने कैसे ये कल्पना कर लेता है कि गुलाब का फूल दे कर किसी भी लड़की को ‘आय लव यू’ बोल देने से उसे गहन और अथाह प्रेम हो जायेगा. एक भी प्रेम कहानी इतने उथले ख्याल पर नहीं बनती और प्रेम का ये छिछोरा प्रेम कामयाब नहीं होता. फिल्म के लेखक का खाली दिमाग दिखाई देता है जब फिल्म में एक नेता राजा रेड्डी (मुरली शर्मा) वोट मांगते समय ऐसा भाषण देते हैं जैसे कि वो अपने प्रेमी को रिझा रहे हैं और प्रेम को उनसे भी प्यार हो जाता है. इसके बाद की कहानी में थोड़ा ट्विस्ट है जो कि फिल्म में थोड़ा रोमांच और थोड़ी गति प्रदान करता है. कहानी यहाँ से शुरू होती तो शायद एक बढ़िया मसाला फिल्म बन सकती थी. फिल्म का पहला हिस्सा पूरा व्यर्थ है और दर्शकों के लिए उबाने वाला है. फिल्म इंटरवल के बाद से देखने लायक है.
फिल्म के हीरो विश्वाक सेन ने अभिनय के साथ कुछ फिल्में निर्देशित भी की हैं जैसे 2017 की बहुचर्चित मलयालम फिल्म ‘अन्गामाली डायरीज’ का तेलुगु रीमेक ‘फलकनुमा दास’ या फिर प्रसिद्ध अभिनेता ‘नानी’ के साथ ‘हिट – द फर्स्ट केस’. अभिनय के मामले में उन्हें अभी लम्बा सफर तय करना है. उनमें हीरो वाले गुणों की सख्त कमी है. डांस ठीक ठाक है, एक्टिंग तो फार्मूला किस्म की है. इतनी लचर कहानी और उसे से भी कमज़ोर स्क्रीनप्ले पर काम करने के लिए उन्होंने कैसे हाँ की, ये सोचने की बात है. भूमिका चावला और मुरली शर्मा अपने अनुभव के दम पर थोड़ा बहुत प्रभाव छोड़ जाते हैं. फिल्म में कॉमेडी की कोशिश की गयी है और एक्शन भी डाला गया है लेकिन उसकी जरुरत सिर्फ दूसरे हिस्से में थी. फिल्म की हीरोइन तीरा (निवेता पेतुराज) हैं जो दिखने में सुन्दर भी हैं और अभिनय भी अच्छा करती हैं. पूरी फिल्म का केंद्र बनने की जरुरत इस किरदार को थी मगर फिल्म का नाम पागल है तो सारा फोकस फिल्म के हीरो पर रखा गया है.
संगीत राधन का है, कुछ गाने हैं जो मस्ती भरे हैं और उनके लिरिक्स भी अंग्रेजी शब्दों से भरे गए हैं. एक गाना तो ‘गूगल’ शब्द का इस्तेमाल करते हुए नज़र आता है. अधिकांश गानों के लिए कोई सिचुएशन फिल्म में है नहीं लेकिन नाटकों की ही तरह इसके गाने फिल्म की कहानी आगे बढ़ाते हैं और इसलिए अजीब नहीं लगते. इस फिल्म को ‘विचित्र’ ही रेट किया जा सकता है. फिल्म में रोमांटिक कॉमेडी होने की क्षमता ठूंसी गयी है जबकि एक क्यूट लव स्टोरी जैसी बन सकती थी. फिल्म में हीरो के किरदार का हर 10 मिनिट में एक नयी लड़की के प्रेम में पड़ जाना बहुत ही ओछा लगता है. लेखक की बुद्धि पर भी तरस आता है जब वो माँ के प्यार की तुलना प्रेमिका के प्यार से करता है. ये कैसे संभव है कि एक लड़की किसी लड़के से उस तरह से प्यार करे जैसे उस लड़के की मां उस से करती थी वो भी सिर्फ इसलिए कि लड़के ने बीच सड़क पर उसे गुलाब का फूल दे कर ‘आय लव यू’ कह दिया हो. बस ऐसे ही अधकचरे विचार के लिए ये फिल्म किसी समझदार को पसंद नहीं आएगी.
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