
फिल्म की कहानी
यहां चार कहानियां एक साथ चलती हैं, जो अलग अलग मोड़ पर एक दूसरे से टकराती है। पहली कहानी है आकाश (आदित्य रॉय कपूर) की, जिसका अपनी गर्लफ्रैंड आहना (सान्या मल्होत्रा) के साथ एक सेक्स टेप पोर्न साइट पर लीक कर दिया गया है। आहना की चार दिनों में किसी और से शादी है। लेकिन अब यह टेप दोनों की जिंदगी में हलचल पैदा कर देती है और इन्हें मुसीबत से निकालने आते हैं सत्तू त्रिपाठी। दूसरी कहानी है बिट्टू तिवारी की, जो कभी सत्तू तिवारी का दाहिना हाथ माना जाता था। लेकिन घर बसाने के लिए उसने अपराध की दुनिया से नाता तोड़ लिया। उसका अब भरा पूरा परिवार है। लेकिन कहते हैं कि पुराने कर्म कभी पीछा नहीं छोड़ते। यही इनके जीवन की ट्रैजेडी है। तीसरी कहानी है आलोक उर्फ आलू (राजकुमार राव) की, जो पिंकी (फातिमा) से बेतहाशा प्यार करता है। और उस प्यार के चक्कर में वह चोरी से लेकर मर्डर तक कर बैठता है। चौथी कहानी है राहुल और श्रीजा की। जो अपनी-अपनी जिंदगी और नौकरी से परेशान हैं। लेकिन एक झटके में किस्मत ऐसा पासा फेंकती है कि दोनों की सीधी सपाट जिंदगी हर क्षण अप्रत्याशित हो जाती है। और इन सभी कहानी और सभी किरदारों से जुड़े हैं डॉन सत्तू त्रिपाठी (पंकज त्रिपाठी)। सत्तू के जीवन की घटनाएं इन सभी किरदारों को प्रभावित करती जाती है या यूं कहें कि सभी गोटियों को अपने अपने घरों तक पहुंचा जाती है।

निर्देशन
“इंसान क्या है? लाइफ की बिसात पर हरी, नीली, लाल, पीली गोटियां.. और इन सबका पासा है ऊपर वाले के हाथ।” इसी आइडिया के साथ अनुराग बसु ने चार कहानियों के जरीए एक साथ अलग अलग जॉनर को दिखाने की कोशिश की है। कुछ हद तक वह सफल भी रहे हैं। फिल्म में कॉमेडी, इमोशन, संस्पेंस और भरपूर अस्थिरता है। अगले क्षण क्या होने वाला है, इसका अनुमान लगाने में काफी हद तक शायद आप फेल हो सकते हैं। इसे निर्देशक की जीत कह सकते हैं.. साथ ही बेहतरीन कलाकारों का साथ। लेकिन एक मोड़ पर आकर ‘लूडो’ 2019 में आई चर्चित तमिल फिल्म ‘सुपर डिलक्स’ की याद दिलाती है। फिल्म का खाका काफी समान दिखता है।

अभिनय
जबसे फिल्म की घोषणा हुई थी, इसके स्टारकास्ट से काफी उम्मीदें जताई जा रही थी। राहत की बात है कि इस पक्ष में फिल्म खरी उतरी है। सभी किरदार काफी दमदार दिखे हैं। बिट्टू तिवारी के किरदार में अभिषेक बच्चन रच बस गए से लगते हैं। कभी गुस्सा, कभी प्यार तो कभी जज्बात.. उनके चेहरे पर बखूबी उभरकर आता है। वहीं, आलोक कुमार गुप्ता उर्फ आलू बनकर राजकुमार राव ने भी जबरदस्त अदाकारी दिखाई है। पंकज त्रिपाठी, फातिमा सना शेख, आदित्य रॉय कपूर, सान्या मल्होत्रा, रोहित सराफ, पर्ल माने, इनायत वर्मा सभी ने अपने अपने किरदारों में सराहनीय काम किया है। खास बात है कि इतनी लंबी चौड़ी कास्ट होने के बावजूद निर्देशक ने सभी किरदारों के साथ न्याय किया है।

तकनीकि पक्ष
ना सिर्फ निर्देशन, बल्कि अनुराग बसु ने ही फिल्म की कहानी, सिनेमेटोग्राफी, पटकथा और प्रोडक्शन का जिम्मा उठाया है। अनुराग बसु की अपनी एक छाप है, जो लूडो पर दिखती है। फिल्म की पटकथा भावनात्मक तौर पर दर्शकों को किरदारों से और भी जोड़ सकती थी। लेकिन नजदीक पहुंचकर चूक गई। जबकि सिनेमेग्राफी के लिए अनुराग बसु की तारीफ होनी चाहिए। चारों कहानी और उनके किरदारों के अलग अलग परिवेश काफी शानदार तरीके से दिखाए गए हैं। अजय शर्मा द्वारा एडिटिंग में कुछ मिनट और काटा जा सकता था। ढ़ाई घंटे लंबा लूडो का यह खेल ऊबा देता है। कसी हुई पटकथा से यह और भी प्रभावी साबित हो सकती थी। सम्राट चक्रवर्ती द्वारा लिखे गए संवाद कुछ दृश्यों में बेहतरीन हैं, जबकि कुछ दृश्यों में सुने सुनाए और औसत।

संगीत
फिल्म का संगीत दिया है प्रीतम ने, जबकि सईद कादरी, स्वानंद किरकिरे, श्लोक लाल और संदीप श्रीवास्तव द्वारा बोल लिखे गए हैं। फिल्म के गाने अच्छे बन पड़े हैं। और बेहतरीन बात यह है कि गाने कहानी को आगे बढ़ाते हैं। अरिजित सिंह की आवाज में ‘आबाद बर्बाद’ कर्णप्रिय है।

क्या अच्छा क्या बुरा
फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष इसकी स्टारकास्ट है। हर कलाकार ने शुरु से अंत तक अपने किरदार को मजबूती से पकड़ रखा है। चारों कहानियां अलग अलग काफी दिलचस्प है। लेकिन जो फैक्टर फिल्म को पीछे खिंचती है, वह है इसकी लंबाई। पूरे ढ़ाई घंटे की यह फिल्म कई मौकों पर उबाती है।

देखें या ना देखें
अपनी जबरदस्त स्टारकास्ट के लिए ‘लूडो’ एक बार जरूर देखी जा सकती है। इसकी चार अलग कहानियां दिलचस्प शुरुआत लेती है, लेकिन धीरे धीरे उलझाती चली जाती है। लिहाजा, फिल्म का क्लाईमैक्स प्रभाव नहीं छोड़ता है। ‘लूडो’ को फिल्मीबीट की ओर से 3 स्टार।