
कहानी
“तू क्यों सच के पिंजरे में बंधा है, धर्म के लिए तो भगवान ने भी स्वांग रचा था, तू क्यों भूल गया..” एक नाटक के दौरान ये संवाद सुनते ही संजू के दिमाग में शादी की विकट परिस्थिति से जूझने का आइडिया आता है। संजू और अदिति मिलकर एक स्वांग यानि की नाटक की तैयारी करते हैं। जिसमें वह नकली मां- बाप की मदद से दो बार शादी करेंगे। पहले संजू अपने नकली मां-बाप के साथ जाकर अदिति से धूमधाम से शादी करेगा और फिर अदिति अपने नकली मां- बाप बनाकर संजू के घरवालों से मिलेगी और फिर से दोनों की शादी होगी। इस गोलमाल वाली योजना को अंजाम देने के लिए, वह ‘दिल्ली की मेरिल स्ट्रीप’ जुबीना (गौहर खान) की मदद लेते हैं, जो थियेटर में संजू की सह- कलाकार होती है। वहीं, नकली पिता बनने के लिए राजी होते हैं थियेटर के ही महान कलाकार अमय (जमील खान)। लेकिन यह प्लान जितनी आसानी से बनाया गया, क्या पूरा भी हो पाएगा?

निर्देशन
निर्देशक देवांशु सिंह ने अपनी रोमांटिक- कॉमेडी फिल्म के लिए एक ऐसा विषय चुना, जो सालों से सामाजिक रूप से प्रासंगिक रही है। बॉलीवुड ने अंतर्जातीय विवाह और ऑनर किलिंग पर कई फिल्में बनाई हैं, लेकिन ज्यादातर गंभीर रही हैं। इसी मामले में ‘चौदह फेरे’ अलग है। यह हल्के फुल्के अंदाज में इन विषयों को छूती है। यहां कोई भारी भरकम उपदेश भरे संवाद नहीं है, ना ही खून खराबा है।
लेखक मनोज कलवानी सतर्कता के साथ मुद्दों को रोमांस और कॉमेडी के साथ बुनते जाते हैं। फिल्म की शुरुआत काफी मनोरंजन है, लेकिन फिल्म क्लाईमैक्स के 10 मिनटों में सारी पकड़ खो देती है। निर्देशक ने मुद्दा तो उठा लिया, लेकिन उस मुद्दे पर प्रभावी ढ़ंग से अपना पक्ष रखने में विफल रहे हैं। फिल्म का क्लाईमैक्स बिल्कुल हड़बड़ी में खत्म किया गया सा लगता है।

तकनीकी पक्ष
एडिटर मनन सागर की एडिटिंग फिल्म के सबसे सकारात्मक पक्षों में शामिल है। उन्होंने फिल्म को महज 1 घंटे 51 मिनट पर समेट दिया, जिस वजह से यह बिल्कुल भी भटकती नहीं दिखती है। निर्देशक ने संजू और अदिति का कॉलेज से जॉब तक का सफर एक गाने में दिखा दिया है। फिल्म कहीं भी बोझिल नहीं लगती है। रेखा भारद्वाज की आवाज में गाया गाना ‘राम- सीता’ दिल छूता है।

अभिनय
वहीं, अभिनय की बात करें तो फिल्म की स्टारकास्ट काफी प्रभावी है। विक्रांत मैसी और कृति खरबंदा की जोड़ी बढ़िया दिखती है। रोमांस और कॉमेडी हो या इमोशनल मेलोड्रामा; दोनों कलाकार अपने हाव भाव के साथ दिल जीतते हैं। वहीं, ‘दिल्ली की मेरिल स्ट्रीप’ बनीं गौहर खान जबरदस्त लगी हैं। काश निर्देशक उनके किरदार को थोड़ा और स्क्रीन स्पेस दे पाते। जमील खान, विनीत कुमार, यामिनी दास, प्रियांशु सिंह सहित बाकी कलाकार ने भी अपनी-अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है।

देंखे या ना देंखे
कुल मिलाकर ‘चौदह फेरे’ एक हल्की फुल्की रोमांटिक कॉमेडी है, जिसे मैसेज से साथ परोसने के चक्कर में निर्देशक थोड़ा ट्रैक से उतर गए। हालांकि फिल्म एक बार जरूर देखी जा सकती है। फिल्मीबीट की ओर से विक्रांत मैसी- कृति खरबंदा अभिनीत ‘चौदह फेरे’ को 2.5 स्टार।