समुद्र मंथन की कथा हम सबने बचपन में पढ़ी है. अमृत पाने के लिए समुद्र में भगवान विष्णु के कूर्म अवतार (कछुआ) की पीठ पर मंदार पर्वत रख कर नाग वासुकि की रस्सी बना कर देवों और असुरों ने मथा था. इस जगह को क्षीर सागर कहा गया है और यहीं विष्णु अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ शेषनाग की शय्या पर विराजमान रहते हैं. इस पौराणिक कथा का तेलुगु फिल्म ‘क्षीर सागर मथनम’ (Ksheer Saagara Madhanam) से कोई ताल्लुक नहीं है, लेकिन फिर भी लेखक निर्देशक अनिल पंगलुरी ने यही नाम क्यों चुना है, ये शोध का विषय है. दुनिया में 7 समुन्दर हैं और इस फिल्म में भी 7 प्रमुख किरदार हैं जिनकी जिन्दगी को दिक्कतें अच्छे से मथ के रख देती है. फिल्म छोटे बजट की है लेकिन फिल्म का मूल आयडिया बड़ा रोचक है.
2007 में शेखर कम्मुला निर्देशित फिल्म “हैप्पी डेज” की कहानी में कॉलेज में साथ पढ़ने वाले 8 दोस्त कैसे क्लासेज से शुरू कर के अपनी ज़िन्दगी के सुख दुःख शेयर करते हैं, ये दिखाया गया था. क्षीर सागर मथनम को “हैप्पी डेज” का अघोषित सीक्वल कहा जा रहा था. फिल्म की कहानी इंटरवल तक काफी आधी अधूरी सी लगती है, एक एक किरदार को इस्टैब्लिश करने के लिए बहुमूल्य समय खराब किया जाता है लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म में थोड़ा रोमांच आता है और फिल्म में मजा आने लगता है.
क्षीर सागर मथनम में 6 तो सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं जो आधार कार्ड का डाटा मैनेज करने वाली कंपनी में काम करते हैं. सातवां इसी सॉफ्टवेयर कंपनी की कैब चलाता है. ओंकार (संजय कुमार) जो शहर की चकाचौंध में रास्ता भटक गया है, शराब-सिगरेट-ड्रग्स और औरतों के चक्कर में पैसे उडाता रहता है. उसके पिता उसकी इच्छाओं के लिए गांव से कर्ज लेकर भी पैसे भेजते रहते हैं. योगेश (प्रियंत) जो वर्कहोलिक है अपने काम की खीज वो अपनी बीवी और अपने बेटे पर उतारता रहता है. गोविन्द (गौतम शेट्टी) जो शादी करने के लिए उधार बैठा है. विरिथा (करिश्मा श्रीकर) को लड़कों को छेड़ने में मजा आता है. भरत (महेश कोमुला) जिन्दगी में कोई भी काम ठीक से नहीं कर सकता.
इशिता (अक्षता सोनवणे) जो अपने बचपन के प्यार को ढूंढ रही है और उसके बचपन का प्यार बड़ा हो कर ऋषि (मानस नागुलापल्ली) बन कर इस सॉफ्टवेयर कंपनी की कैब चलता है. इन सबके साथ एक आतंकवादी, एक नयी तकनीक से विस्फोटक को शरीर में इस तरह से घुसा देता है कि उसे किसी भी तरीके से ढूंढा नहीं जा सकता. इस आतंकवादी का इरादा, सॉफ्टवेयर कंपनी को खत्म करने का है. क्या ये सब मित्र मिल कर इस आतंकवादी को रोक पाते हैं, ये देखने का विषय है. ये फिल्म थिएटर में कुछ खास कर नहीं पायी जबकि फिल्म मनोरंजक है.
फिल्म की शुरुआत से कहानी में काफी उम्मीदें जाग जाती हैं लेकिन आतंकवाद का वो ट्रैक पूरी तरह भुला दिया जाता है. पहले आधार कार्ड का सारा डाटा सरकारी कम्प्यूटर्स से डिलीट कर दिया जाता है और फिर सॉफ्टवेयर कंपनी (क्यू बेस) में से भी इसे डिलीट करने की साज़िश के तहत ही इन मित्रों को फंसा दिया जाता है. सभी कलाकारों का अभिनय साधारण है. संजय कुमार के पिताजी ब्रम्हाजी तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में बहुत बड़े कैरेक्टर आर्टिस्ट हैं और संजय में उनके कुछ गुण तो जरूर आये हैं, लेकिन वो काफी नहीं हैं.. गौतम शेट्टी असहज रहे हैं. महेश कोमुला से अभिनय नहीं करवाना चाहिए, वो कॉमेडी ही करते हुए लगते हैं. मानस में तेलुगु फिल्मों के कमर्शियल हीरो बनने का पूरा मसाला मौजूद है इसलिए वो इस तरह की कहानी में डांस, एक्शन, डायलॉगबाजी और गुंडों की धुलाई जैसे काम करते हुए नजर आते हैं.
अक्षता सोनवणे ने एमटीवी के रियलिटी शो स्प्लिट्सविला में कॉन्ट्रवर्सी की एक लम्बी लिस्ट लगा दी थी. उनके कई सीन्स तो बहुत ही बोल्ड थे. हालांकि इस फिल्म में ऐसा कोई काम उन्हें करने को नहीं मिला है. फिल्म की स्टोरी और स्क्रीनप्ले अनिल पंगलुरी ने लिखी है और डायलॉग के लिए वीएनवी रमेश कुमार को जोड़ा है. स्क्रीनप्ले में काफी गुंजाईश थी क्योंकि निर्देशक ने प्रत्येक किरदार को एक एक स्टोरी देने का फैसला कर लिया और उनकी बैक स्टोरी दिखाने की गलती भी कर दी. जब तक किरदार समझ आते हैं, फिल्म बहुत ही धीमी सी लगती है.
बजट कम होने की वजह से फिल्म का स्केल छोटा है और इसलिए कम अनुभवी कलाकार लिए गए हैं. इस फिल्म के तीन विभाग अगर बेहतर होते तो ये फिल्म बढ़िया बन सकती थी. सिनेमेटोग्राफर संतोष शानमोनी ने फिल्म के लुक में ही छोटा बजट दिखा दिया है. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा था लेकिन फिल्म के गाने कमजोर थे. पॉपुलर होने के गुण वाले गाने न होने की वजह से छोटे कलाकार अक्सर पिट जाते हैं. तीसरा और अंतिम विभाग जहां अच्छे काम की सख्त जरुरत होती है वो है एडिटिंग. वामसी अटलूरी नए हैं लेकिन उनके काम से उनमें कोई प्रतिभा है ऐसा जान नहीं पड़ता. फिल्म ठीक है. देख सकते हैं. दूसरा हाफ फिल्म की सेहत के लिए ठीक है.