Afghanistan Sofia Hakimi Says Taliban Is Again Trying To Implement 20 Year-old System Ann | Afghanistan Crisis: अफगानिस्तान की सोफिया हकीमी ने कहा

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अफगानिस्तान में तालिबानी नियंत्रण कायम हुए करीब 50 दिन हो गए हैं. ऐसे में बेहद मुश्किल हालात का कहर टूटा है तो अफगानिस्तान की महिलाओं पर. पाबंदियों के पहरे वाले तालिबानी राज से इस बार महिलाएं अपने हौसले के साथ टकराने की कोशिश कर रही हैं. वहीं प्रयास है बेहतर भविष्य के दरवाजे खटखटाने का भी. 

अफगान युवाओं के लिए भविष्य की संभावनाओं और उम्मीद का एक बड़ा दरवाज़ा भारत में खुलता है. भारत सरकार से मिलने वाले वजीफों के साहारे क़ई अफ़ग़ान युवा और खासतौर पर महिलाएं अपने कल को संवारने की कोशिश करती हैं. तालिबान राज में मौजूदा हालात की कठिनाइयों और भविष्य की उम्मीदों को लेकर जारी अफ़ग़ान युवाओं की कश-म-कश पर एबीपी न्यूज़ ने बात की सोफिया हकीमी से जिनके सपनों को तालिबान राज ने चकनाचूर कर दिया. 

सोफिया भारत में पंजाब सेंट्रल यूनिवर्सिटी से MBA कर कुछ महीने पहले ही काबुल लौटी थीं. भारत में हासिल प्रोफेशनल डिग्री के सहारे उसे एक बिजली वितरण कम्पनी में नौकरी भी मिल गई थी. लेकिन सोफिया को शायद इस बात का ज़रा सा भी अंदाज़ा नहीं था कि पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी होने वाली अफ़ग़ान लड़की बनने का यह ख़्वाब कुछ ही दिनों का मेहमान है. क्योंकि सोफिया के नौकरी शुरू करने के कुछ ही दिनों बाद काबुल पर तालिबान का कब्जा हो गया और उसकी नौकरी जाती रही.

सोफिया बताती हैं कि अब जब भी कम्पनी में जाकर तलाश करते हैं तो तलीबानी कारिंदे टका सा जवाब देते हैं. कहा जाता है कि महिलाओं के काम करने को लेकर अभी अंतिम निर्णय लिया जाना है. उस फैसले के बाद ही सोफिया के काम करने को लेकर तस्वीर कुछ साफ होगी. 

अपना दर्द साझा करते हुए सोफिया कहती हैं कि तलीबान दुनिया को दिखाने के लिए कुछ भी कहें, लेकिन उनकी ज़मीनी असलियत कुछ और ही है. जिसमें साफ तौर पर नज़र आता है कि तालिबान फिर से 20 बरस पुरानी व्यवस्था लागू करने पर आमादा है. 

ऐसे में लड़कियों के लिए स्कूल अभी तक नहीं खुले हैं. सोफिया की छोटी बहन 9वीं क्लास में पढ़ती है लेकिन फिलहाल घर में ही रहने को मजबूर है. क्योंकि स्कूल फिलहाल लड़कियों के लिए केवल छठी कक्षा तक ही खोले गए हैं. उससे अधिक की जमात में पढ़ने वाली लड़कियों को स्कूल जाने की इजाजत नहीं है. इतना ही नहीं स्कूल में पढ़ाने वाली सोफिया की मां भी इन दिनों घर में ही बैठने को मजबूर हैं.

हालांकि सोफिया के मुताबिक काबुल शहर में महिलाओं के पहनावे पर अभी बुर्के की अनिवार्यता नहीं लागू की गई है. लिहाजा घर से बाहर निकलने पर वो अपने सिर को ढंककर सामान्य पहनावे में निकलती हैं. लेकिन इतना ज़रूर है कि सड़क पर मौजूद तालिबानी लड़ाकों की नजरें बाकायदा घूरती हैं और जिनमें साफ नजर आता है कि वो इस पहनावे को न पसंद करते हैं और न मंजूर करते हैं.  

सोफिया के मुताबिक उसके जैसी क़ई लड़कियों समेत 850 युवाओं के लिए उम्मीद का दरवाजा है भारत से हासिल वजीफा. जिसके सहारे वो भारत में आकर अपनी पढ़ाई पूरी कर सकती हैं. अपने सपनों को पूरा कर सकती हैं. सोफिया भारत आने पर पीएचडी करना चाहती हैं. 

इसको लेकर सोफिया ने भारत सरकार से लेकर तालिबान के आगे गुहार लगाई है. उनके मुताबिक तालिबानी व्यवस्था में काम कर रहे विदेश मंत्रालय का कहना है कि भारत से उड़ानें शुरू हो जाती हैं तो उन्हें जाने दिया जाएगा. वहीं भारत सरकार को लिखी चिठ्ठियों पर जवाब का उन्हें अभी तक इंतजार है.

सोफिया समेत कई अफ़ग़ान युवा कतर समेत अन्य देशों के रास्ते भी भारत आने को तैयार हैं. इसमें अड़चन है भारतीय वीज़ा. जिसको हासिल करने में दिक्कतें पेश आ रहीं हैं. 

गौरतलब है कि भारतीय विदेश मंत्रालय के तहत काम करने वाले भारतीय संस्कृतिक सम्बंध परिषद हर साल करीब 1000 वजीफे अफगानिस्तान के युवाओं को देता है. इन वजीफों के सहारे अफ़ग़ानिस्तान के क़ई होनहार विद्यार्थी स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी स्तर कोर्स कर पाते हैं. 

कुछ समय पहले एबीपी न्यूज़ ने इस मामले पर भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के महानिदेशक दिनेश पटनायक से बात की थी. उन्होंने बताया था कि काबुल में हुए सत्ता परिवर्तन के साथ भारत में पढ़ाई कर रहे कई अफगान छात्रों के सामने भी भविष्य का संकट खड़ा हो गया है. भारत में करीब 2000 से अधिक अफगान छात्र पढ़ाई कर रहे हैं. इनमें से कई विद्यार्थियों के निर्धारित कोर्स खत्म हो रहे हैं, जिसके बाद उन्हें भारत में रहने के लिए वीजा अवधि बढ़ानी होगी. इसको लेकर विदेश मंत्रालय ने गृह मंत्रालय के साथ मामले को उठाया है. सरकार इस संबंध में जल्द ही जरूरी कदम उठाएगी.

 

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