Birthday Special The Mystery Painting Of Monalisa Is A Fraud By Leanardo Da Vinci | लियोनार्डो द विंची: सबसे जीनियस कलाकार या सबसे जीनियस जालसाज?

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लियोनार्डो द विंची: सबसे जीनियस कलाकार या सबसे जीनियस जालसाज?



मध्यकालीन यूरोप की घटना है. इटली का कोई छोटा कस्बा था. शाम का समय था. एक आदमी शहर के मुख्य दरवाजे पर खड़े गार्ड्स से बहस रहा था कि उसे अंदर जाने दिया जाए.

पहचान पूछे जाने पर वो खुद को ‘द विंची’ बता रहा था. लियोनार्डो द विंची. गार्ड हंस रहे थे. मशहूर द विंची इस गांव में. उस आदमी ने एक छड़ी उठाई और मैदान में बड़ा सा गोला बनाना शुरू कर दिया. गोला बनाकर उसके बीच में खड़ा हो गया. जमीन पर बनी वो आकृति एक परफेक्ट वृत थी और वो आदमी जहां खड़े थे वो उस सर्किल का केंद्र था.

इस तरह की कारीगरी लियोनार्डो द विंची की प्रतिभा का एक नमूना है. दुनिया के सबसे प्रतिभावान इंसान का दर्जा पा चुके इस शख्स को लोग उनकी पेंटिंग मोनालिसा से जानते हैं. मगर विंची एक पेंटर ही नहीं मिलिट्री इंजीनियर, साइंटिस्ट, बायोलॉजिस्ट, केमिस्ट, मूर्तिकार और भी जाने क्या-क्या थे.

15 अप्रैल 1452 को पैदा हुए इस शख्स से जुड़े दिलचस्प किस्सों की कमी नहीं है. साथ ही ऐसे लोग भी हैं जो मानते हैं कि लिनयार्डो द विंची ने अपने बेपनाह टैलेंट को इस्तेमाल करके शायद इतिहास की कुछ सबसे बड़ी जालसाजियां भी कीं. आइये पढ़ते विंची से जुड़ी कुछ कम रोचक चीजों के बारे में.

एक से बढ़कर एक डिजाइन मगर सबमें कोई खोट

विंची की सबसे पुख्ता पहचान एक पेंटर के रूप में हैं मगर मिलिट्री इंजीनियर के तौर पर बनाई गई उनकी डिजाइन्स अदभुत हैं. विंची की डायरी में कई हथियारों, उड़ने वाली मशीनों और टैंक जैसी गाड़ियों की डिजाइन मिलती है.

लियोनार्डो द विंची की आर्म्ड वेहिकल

लियोनार्डो द विंची की आर्म्ड वेहिकल

ये सारी डिजाइन्स अपने समय से कहीं आगे की चीजें थी और मध्ययुग में इनको बनाने लायक तकनीक संभव नहीं थी. गौर फरमाइये कि विंची जिस समय यूरोप में ये काम कर रहे थे, हिंदुस्तान में मुगलों के आने में भी 50 साल बाकी थे.

विंची की डिजाइन्स में एक बड़ी अजीब बात है कि अगर उन्हें हुबहू बना दिया जाए तो उनमें से कई काम नहीं करेंगी. जैसे विंची की बख्तरबंद गाड़ी के गियर की डिजाइन ऐसी है कि उसको चलाने पर दो पहिए आगे जाएंगे और दो पीछे.

आज के वैज्ञानिक मानते हैं कि विंची ने ऐसा अपने आइडिया को चोरी होने से बचाने के लिए किया होगा. जिस दौर में पेटेंट और कॉपीराइट की कोई व्यवस्था नहीं थी वो अपनी रचनात्मकता को ऐसे ही बचाए रखते होंगे.

प्रयोगों के चलते सिर्फ 15 पेंटिंग्स

मोनालिसा की पेंटिंग दुनिया की सबसे ज्यादा महंगी और कॉपी की गई पेंटिंग है. वहीं विंची की बनाई ‘द लास्ट सपर’ पेंटिंग को ईसा मसीह की वंशावलि से जोड़कर देखा जाता है.

डैन ब्राउन का लिखा उपन्यास ‘द विंची कोड’ भी जीसस के कथित परिवार और विंची के उस वंश के रक्षकों में से एक होने की कहानी सुनाता है. मगर विंची की कुलजमा 15 पेंटिंग्स ही उपलब्ध है.

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इतनी कम गिनती के पीछे दो कारण हैं. पहला तो विंची के पास जितनी प्रतिभा थी, वो बहुत जल्दी पेंटिंग जैसे काम से ऊब जाते और काम अधूरा छोड़ देते.

दूसरा विंची ने पेंटिंग्स में रंगों को लेकर तमाम केमिकल प्रयोग किए. इसके चलते उनका काफी काम बहुत लंबे समय तक नहीं टिका.

विंची की सबसे प्रसिद्ध पेंटिंग मोनालिसा के बारे में भी कई थ्योरी प्रचलित है. मोनालिसा की मुस्कान के अलावा ‘मोनालिसा कौन थी?’ ये भी एक बड़ी पहेली है. इनमें से सबसे चर्चित दो धारणाओं की माने तो या तो ये पेंटिंग मोनालिसा खुद विंची के महिला के रूप में पोट्रेट है या उनकी मां का पोट्रेट है.

ईसा-मसीह का कफन और जालसाजी

इटली के सेंट जॉन द बाप्टिस्ट कैथेड्रल में एक लिनेन का बहुत पुराना कपड़ा रखा है. ‘श्राउड ऑफ ट्यूरिन’ के नाम के इस कपड़े को ईसा मसीह का कफन माना जाता है. इस पर एक आदमी की आकृति बनी हुई है जिसके कलाइयों (हथेली नहीं) में छेद है, दाढ़ी और मूंछ हैं.

जगह-जगह चोट लगी हुई है. रोमन कैथोलिक चर्च ने लंबे समय तक श्राउड को न तो मान्यता दी न ही रिजेक्ट किया. 1958 में पोप पियस 12वें ने इसे ईसा मसीह के चेहरे के तौर पर मान्यता दी.

2009 में आई एक टीवी डॉक्यूमेंट्री ने श्राउड के बारे में चौंकाने वाली जानकारी दी. श्राउड पर बनी तस्वीर की फोटो खींचकर निगेटिव देखने पर एक आदमी का चेहरा बनता है. न्यूयॉर्क की ग्राफिक आर्टिस्ट लिलियन श्वॉर्ट्ज़ ने इस चेहरे को विंची के चेहरे के साथ कंप्यूटर पर स्कैन किया तो दोनों चेहरे लगभग समान थे.

इटली में रखी श्राउड ऑफ ट्यूरिन

इटली में रखी श्राउड ऑफ ट्यूरिन

इसके अलावा ये भी दावा किया जाता है कि कार्बन डेटिंग में इस कपड़े को बनाने का समय 1200 के आस-पास मिलता है. डॉक्युमेंट्री में श्राउड की तस्वीरों का कई वैज्ञानिक तरीकों से ऐनालिसिस किया गया.

अगर इस डॉक्युमेंट्री की मानें तो श्राउड पर सिल्वर ब्रोमाइड जैसा केमिकल लगाकर अंधेरे कमरे में लंबे समय तक रखा गया. ये ठीक वही तकनीक है जो रील वाली फोटोग्राफी में इस्तेमाल होती है.

अगर ऐसा है तो विंची कैमरे के आविष्कार से कहीं पहले फोटोग्राफी की तकनीक को समझ चुके थे और उसके इस्तेमाल से अपने चेहरे को दुनिया में हमेशा के लिए अमर कर चुके थे.

कुछ चीज़ें समय, तथ्य, कल्पना और आस्था के साथ मिलकर ऐसी बन जाती हैं कि उनमें कभी भी हकीकत और फसाने के बीच के अंतर को पूरी तरह से मिटाया नहीं जा सकता.

श्राउड की कहानी भी ऐसी कुछ है मगर ये सब कहानियां द विंची के हुनर की ही तसदीक करती हैं और कुछ नहीं.

(ये लेख पहली बार 2017 में प्रकाशित किया गया था, आज लियोनार्डो द विंची की जन्मतिथि पर इसे दोबारा प्रकाशित किया जा रहा है)