FILM REVIEW ‘#होम’: एक पिता बोल ही तो नहीं पाता

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दुनिया के हालात इतनी जल्दी ठीक होते नजर नहीं आते. पिछले कुछ समय से महामारी की वजह से सिर्फ शरीर ही नहीं, मन भी टूट गए हैं. ऐसे में परिवार के आपसी रिश्तों पर भी बहुत गहरा असर हुआ है. एक तरफ जहां ज्यादा समय साथ बिताने की वजह से रिश्ते कमजोर हुए हैं, तो वहीं कुछ रिश्तों में नई जान आ गई है. जो रिश्ते अब फिर से नए हो चले हैं, उनकी नाजुक खयाली को ध्यान में रखते हुए कोई ऐसी फिल्म देखने को मिले जिसमें परिवार के रिश्तों की गहराई समझायी जाए और वो भी बहुत ही सरल तरीके से तो वो फिल्म देखी ही जाना चाहिए. अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज मलयालम फिल्म “#होम” देखना यानी अपने बूढ़े होते मां-बाप को टेक्नोलॉजी से जूझते देखना, अपने दादाजी को पुरानी यादों में खोये हुए देखना और आज के जमाने में अपनी एक बढ़ियां इमेज बनाये रखने के लिए तमाम तरीके अपनाना. #होम सुन्दरतम है.

सिनेमा, कहानी प्रस्तुत करने का माध्यम है. कहानी कितनी मानवीय और कितनी सुरुचिपूर्ण हो सकती है ये लेखक और निर्देशक पर निर्भर करता है. हिंदी फिल्मों में मानवीयता का नाटकीयकरण कुछ ज़्यादा ही हो चला है. लेखक ऐसी कहानियां लिखने लगे हैं जिसमें मुख्य किरदार की जय जयकार के अलावा कुछ नहीं होता. ऐसे में क्षेत्रीय सिनेमा यानि रीजनल सिनेमा, रेगिस्तान में पानी का स्त्रोत बना हुआ है और इन सब में भी सबसे बड़ा स्त्रोत मलयालम सिनेमा का ही है. ‘#होम’ एक मलयालम फिल्म है जिसे लिखा और निर्देशित किया है रोजिन थॉमस ने. ये इनकी तीसरी फिल्म है और इसके पहले की दो फिल्में काफी अवॉर्ड जीत चुकी हैं. #होम को राष्ट्रीय स्तर अवॉर्ड्स मिलने की गारंटी है, और यदि ठीक से मार्किट किया जाए तो अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड्स भी जीत सकती है.

इस फिल्म की कहानी पिता और पुत्र के आपसी रिश्तों की है. डिमेन्शिया के मरीज़ अप्पचन (कैनकारी धनकराज) और उनका बेटा ओलिवर ट्विस्ट (इन्द्रान्स) और ओलिवर के दो बेटे एंथनी (श्रीनाथ भासी) और चार्ल्स (नासलेन) के रिश्तों को बनते बिगड़ते और फिर बनते देखने का ये सफर है तो लम्बा (2 घंटा 41 मिनिट) लेकिन एक पल भी ऐसा नहीं है जहां आप स्क्रीन से ध्यान हटा कर चाय का कप उठा सकें.

फिल्म के किरदार लिखते समय रोजिन ने संभवतः अपनी ज़िन्दगी के कई किस्सों का निचोड़ डाला है. एक होता है किसी घटित घटना को ज्यों का त्यों लिख देना और एक होता है किसी घटना के पीछे की भावनाओं को बारीकी से प्रस्तुत करना. रोजिन की लेखनी कमाल है. कुछ बाकमाल उदहारण हैं जो किरदारों को रचने में इस्तेमाल किये हैं. दादा अप्पचन, अंग्रेजी उपन्यासों के मलयालम ट्रांसलेशन टाइप किया करते थे तो उन्हें उनके किरदार पसंद आये इसलिए बेटों का नाम ओलिवर ट्विस्ट और पीटर पैन रख और बेटी का नाम मैरी पॉपिंस। पूरी फिल्म में वो अंग्रेजी के डायलॉग बोलते रहते हैं और वॉकर लेकर घर में चलते रहते हैं. रहस्य से पर्दा अंत में उठता है कि वो डायलॉग, ओलिवर ट्विस्ट उपन्यास के थे जो उन्हें बेहद पसंद था और अपने बेटे का नाम भी इसिलए ओलिवर ट्विस्ट रखा था. पिता पुत्र का प्रेम देखने का ये नया नजरिया है.

ओलिवर टिवस्ट बहुत ही सीधा और सरल व्यक्ति है. वो चाहता है कि उसके पास भी स्मार्ट फ़ोन हो. अपने बड़े बेटे से वो वीडियो कॉल पर बात कर सके. फेसबुक, व्हॉट्सएप (जिसे वो व्हॉट सोप कहता है), इंस्टाग्राम जैसी एप्स का इस्तेमाल कर सके. ऑनलाइन पेमेंट कर सके. उनका भोलापन इतना है कि 4000 रुपये का टच स्क्रीन फ़ोन भी महंगा लगता है और दुकानदार से 2000 का डिस्काउंट मांगते हैं. ओलिवर अपने बेटों के करीब जाने की कोशिश करता है और बेटे उसे झिड़क देते हैं क्योंकि उनका पिता उन्हें कूल नहीं लगता. ओलिवर की भूमिका निभाने वाले इन्द्रान्स को मलयालम फिल्मों में कॉमेडी भूमिकाओं के लिए जाना जाता है लेकिन इस फिल्म में उन्होंने एक बूढ़े, लाचार और अपनेपन को तरसते पिता की भूमिका में सभी की आंखें भिगो दी हैं. ये किरदार उन्हें अमर कर देगा.

ओलिवर का बड़ा बेटा एंथनी फिल्म डायरेक्टर है. वो अपने होने वाले ससुर से बहुत प्रभावित है. वो उनके लिए हमेशा कुछ न कुछ करता रहता है, हर बात में उनसे सलाह लेता है. ससुर के 50वे जन्मदिन पर उनकी ऑटोबायोग्राफी का विमोचन होता है. एंथनी अपने पिता को झिड़क देता है कि उनकी ऑटोबायोग्राफी तो शायद आधे पन्ने की भी नहीं होगी. किताब के विमोचन वाले दिन सब जमा होते हैं और एंथनी के ससुर अपनी मां को दो शब्द कहने को कहता है. उसकी मां किताब के कवर पर लगी तस्वीर की कहानी सुनाती है और एक बहुत बड़े रहस्य से पर्दा उठता है. एक अनजान और महत्वहीन ज़िन्दगी जीने वाले ओलिवर ट्विस्ट की ज़िन्दगी में ऐसा बदलाव आता है कि वो ज़िन्दगी भर के सारे गम भूल कर, अंदर से खुश हो जाता है.

ओलिवर का छोटा बेटा चार्ल्स आज की पीढ़ी का सही प्रतिनिधि नज़र आता है. ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाली अपनी बूढी मां को सीढ़ियां चढ़वाता है ताकि वो उसके रूम का पंखा बंद कर सकें. पिता जी को बड़े बेटे की कार धोते देखता है तो अपनी स्कूटी भी उन्हें चुपके से धोने के लिए दे देता है. घर की छत पर पिता जी के लगाए वेजिटेबल गार्डन को अपना बता कर रोज़ाना यूट्यूब वीडियोस भी बनाता है. मेहमानों के सामने वो अपनी मां से कुछ ज़्यादा ही बेतकल्लुफी से पेश आता है और फिर झापड़ खाता है.

फिल्म के प्रोड्यूसर मलयालम एक्टर विजय बाबू हैं जो स्क्रीन पर आने का मोह संवरण नहीं कर पाए और फिल्म में मनोवैज्ञानिक डॉक्टर फ्रैंकलिन की छोटी मगर बहुत ही मज़ेदार भूमिका में हैं. उनके साथ अनूप मेनन ने सुपरस्टार विशाल की भूमिका में अच्छा काम किया है. फिल्म के हीरो श्रीनाथ भासी हैं जो एंथनी की भूमिका में हैं लेकिन फिल्म चलती है इन्द्रान्स के मज़बूत कन्धों पर. ओलिवर ट्विस्ट की पत्नी कुट्टीअम्मा के रोल में मंजू पिल्लई किरदार को जी गयीं हैं. एंथनी की गर्लफ्रेंड प्रिया के रोल में दीपा थॉमस ने भी अच्छा काम किया है. चार्ल्स का रोल किया है नासलेन ने, जिन्हें हाल ही में “कुरुथी” फिल्म में भी देखा गया था.
रोजिन थॉमस अपनी टीम के साथ काम करते हैं. म्यूजिक डायरेक्टर राहुल सुब्रमणियन हों या सिनेमेटोग्राफर नील डाकुन्हा हों या फिर एडिटर प्रिजेश प्रकाश. आपस में ट्यूनिंग अच्छी होने की वजह से काम अच्छा मिलता है. राहुल ने फिल्म के बैकग्राउंड में यूरोपियन फील पैदा कर के दृश्यों के मर्म को नयी ऊंचाइयां दी है. गाने भी अच्छे हैं लेकिन ओटीटी पर रिलीज़ होने की वजह से ज़्यादा पॉपुलर हो नहीं पाए हैं.

#होम एक उम्दा प्रस्तुति है. किसी स्मार्ट फ़ोन के ढेरों फीचर की तरह. हर एप के साथ कुछ नया मिलता है. हर एप के साथ एक नया फीचर समझ आता है. #होम में भी हर दृश्य एक नयी फीलिंग को जन्म देता है. अपने पेरेंट्स के प्रति मन के किसी कोने में दबी भावनाएं फिर से सामने आ खड़ी होती हैं. #होम जैसा सुंदर सिनेमा आपने कई दिनों से नहीं देखा होगा. भाषा के बंधनों को तोड़कर देखिये.

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