मलयालम सिनेमा (Malayalam Cinema) की तारीफ करना अब गलत लगता है क्योंकि इस भाषा की कोई फिल्म देख कर लगता है अब इस से अलग क्या बनाया जा सकता है, इस भाषा में एक और कोई नयी फिल्म (Malayalam Movies) चली आती है जिसकी कहानी इतनी अलहदा और इतनी अलग होती है कि आप सिवाय हतप्रभ रहने के कुछ और नहीं कर सकते. सोनी लिव पर रिलीज़ फिल्म “कानक्काने (Kaanekkaane)” के लेखक हैं “बॉबी-संजय” जो दोनों भाई है, मलयालम एक्टर प्रेम प्रकाश से बेटे हैं और फिल्म-टेलीविज़न में लिखने के लिए अब तक कई अवॉर्ड्स जीत चुके हैं. निर्देशक मनु अशोकन के साथ उनकी दूसरी फिल्म “कानक्काने” में सभी प्रमुख किरदार अपनी बनायी हुई, मानी हुई और ओढ़ी हुई नैतिकता से जूझते हुए नज़र आते हैं.
बॉबी-संजय और मनु अशोकन की मण्डली की ये दूसरी फिल्म है. एसिड अटैक सर्वाइवर पायलट की कहानी पर इन्होने शुरुआत की थी “उयारे” (2019) से. दीपिका पादुकोण की फिल्म “छपाक” के पहले. मनु अशोकन ने अपनी पहली ही फिल्म से अपनी असाधारण प्रतिभा के संकेत दे दिए थे. उयारे को दर्शकों ने, समीक्षकों ने और अवॉर्ड्स ने…सभी ने पसंद किया. कानक्काने के साथ ये टीम फिर एक ऐसी फिल्म लेकर आयी है जिसमें दर्शक, कहानी के साथ सोचने की भरपूर कोशिश करता है लेकिन उसके कयास सही हों, ऐसा कम होता है.
कहानी पॉल मथाई (सूरज वंजारामूडु) और उनकी दिवंगत बेटी के पति एलन (टोविनो थॉमस) के बीच की है. पॉल की बेटी शेरीन (श्रुति रामचंद्रन) की एक हिट एंड रन एक्सीडेंट में मौत हो गयी थी. लम्बे समय तक केस चलता रहता है तब जांच के दौरान पॉल को पता चलता है कि उसकी बेटी शेरीन को उसका पति एलन बचा सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. इसकी वजह थी पॉल का स्नेहा (ऐश्वर्या लक्ष्मी) के साथ अफेयर. श्रुति के गुजरने के बाद एलन अपने ससुर पॉल की इजाज़त से स्नेहा से शादी कर लेता है लेकिन अफेयर की बात छुपा के रखता है. अपने नाती को ऐसे झूठे पिता के साये से दूर रखने के लिए पॉल उसे ले जाना चाहता है लेकिन होता क्या है वो फिल्म का रहस्य है.
फिल्म एक सामान्य गति से चलते थ्रिलर और मिस्ट्री की तरह काम करती है. अपने पूर्व दामाद की वर्तमान गर्भवती पत्नी स्नेहा के साथ पॉल के संवाद और दृश्य, लेखकों की नयी सोच दिखाते हैं. फ्लैशबैक में कई जगह ससुर और दामाद आपस में ठिठोली करते दिखाए गए हैं लेकिन बाद के दृश्यों में उनके बीच का तनाव हज़ारों मन के पत्थर की तरह दर्शकों पर असर डालता है. पॉल को अपनी बेटी को न बचा पाने का दुःख है. एलन को अपने अफेयर की गिल्ट है और अपनी पत्नी को एक्सीडेंट के बाद मरने के लिए तड़पता छोड़ देने की गिल्ट है.
दामाद की पत्नी स्नेहा को एलन के मूड स्विंग्स, अपनी प्रेगनेंसी से शादी में पड़ती दरारों और पति के पूर्व स्वसुर के साथ अजीब से रिश्ते में चलते तनाव का गिल्ट है. तीन कद्दावर कलाकारों ने इस फिल्म को एक नयी ऊँचाई दी है. तीनों का परफॉरमेंस अवार्ड जीतने लायक है खास कर सूरज का. सूरज की खासियत है कि वो रोल को आत्मसात कर लेते हैं और फिर किसी जादूगर की तरह उसमें ढल जाते हैं. वो हर बार एक नए कलाकार की तरह नज़र आते हैं. टोविनो धीरे धीरे फहाद फ़सील की तरह होते जा रहे हैं. हर फिल्म में एक अलग किरदार में नज़र आते हैं. गेटअप हों या मैनरिज़्म, टोविनो कमाल करते हैं. ऐश्वर्या लक्ष्मी ने हाल ही में धनुष के साथ जगमे थंडीरम में भी कमाल काम किया था. ऐश्वर्या सुन्दर हैं और उनका अभिनय उनकी सुंदरता से प्रतियोगिता करता नज़र आता है.
ऐसा नहीं है कि फिल्म में कमियां नहीं हैं. पॉल की बेटी शेरीन का किरदार बहुत जल्दी ख़त्म हो गया. एलन – पॉल -शेरीन के बीच के समीकरण पूरी तरह डेवेलप नहीं हुए थे. रेंजिन राज का म्यूजिक फिल्म में फैले तनाव को बढ़ाने बढ़ने में व्यस्त रहता है इसलिए जो ख़ुशी के पल रहे वहां का संगीत उतना प्रभावशाली नहीं हो पाया. यूरोपियन सिनेमा की तरह ही सूरज और टोविनो बिना बोले, सिर्फ रेंजिन के संगीत की मदद से और आँखों से सारी भावनाएं व्यक्त करते हैं. सबसे पहले एक गलती, फिर उसको छुपाने की कोशिश, दुर्भाग्य से एक्सीडेंट में जान चली जाना, फिर उसके पीछे के रहस्य को छुपाने की कोशिश, एक पिता की अपनी बेटी के लिए बेचारगी, थोड़ी जासूसी और जांच पड़ताल और जुर्म साबित होने के बाद जब सूरज के सामने एक ऐसी परिस्थिति निर्माण होती है जहां उसे सही होने में और अपनी बेटी की मौत का बदला लेने के ऑप्शन में से एक चुनना होता है तो वो किस कश्मकश से गुज़रता है. ऐसी अद्भुत कहानी के लिए ये फिल्म देखने लायक है. वैसे भी मलयालम फिल्मों में मूर्खता नहीं होती इसलिए इन्हें देख कर शायद हिंदी फिल्म निर्माताओं के दिमाग के तार थोड़े हिलें, इसी उम्मीद के साथ…आज ही देख डालिये.
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