Raagdari | रागदारी: राजेश खन्ना के दो अमर गीतों के पीछे की कहानी

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रागदारी: राजेश खन्ना के दो अमर गीतों के पीछे की कहानी



साल 1961 की बात है. निर्देशक एसए अकबर एक फिल्म बना रहे थे. फिल्म का नाम था- छोटे नवाब. इस फिल्म में महमूद, जॉनी वॉकर और हेलेन जैसे कलाकार अभिनय कर रहे थे. इस फिल्म को कलाकार महमूद ही प्रोड्यूस भी कर रहे थे. वो चाहते थे कि एसडी बर्मन इस फिल्म का संगीत करें लेकिन बर्मन दादा के पास उस समय तारीखों की दिक्कत थी इसलिए उन्होंने इस फिल्म का संगीत तैयार करने से मना कर दिया. उसी रोज महमूद की नजर आरडी बर्मन पर गई जो उस वक्त रियाज कर रहे थे, महमूद ने फौरन इस फिल्म के संगीत के लिए आरडी बर्मन को साइन कर लिया.

बतौर संगीत निर्देशक आरडी बर्मन की ये पहली फिल्म थी. इससे पहले आरडी ने अपने पिता एसडी बर्मन के सहायक के तौर पर काफी काम किया था लेकिन स्वतंत्र तौर पर वो पहली बार किसी फिल्म का संगीत देने जा रहे थे. दिलचस्प बात ये थी कि बतौर संगीत निर्देशक अपनी पहली फिल्म के पहले गाने का संगीत जैसे ही उन्होंने तैयार किया, उनके दिमाग में सिर्फ और सिर्फ लता मंगेशकर का नाम आया. दरअसल, वो अपना तैयार किया गया पहला गाना लता मंगेशकर की आवाज में रिकॉर्ड कराना चाहते थे.

परेशानी ये थी कि उस समय लता मंगेशकर और आरडी बर्मन के पिता एसडी बर्मन में मनमुटाव चल रहा था. हालात ऐसे थे कि दोनों एक दूसरे के लिए काम करना बंद कर चुके थे. ना तो बर्मन दादा लता मंगेशकर से गाने गवाते थे और न ही लता मंगेशकर उनके लिए गाने को तैयार होती थीं.

ये सिलसिला काफी साल तक खिंचा था. इस मनमुटाव की कहानी जानने के बाद भी आरडी बर्मन ने संगीतकार जयदेव के जरिए अपनी बात लता जी तक पहुंचाई. जयदेव एसडी बर्मन के सहायक हुआ करते थे. लता मंगेशकर इस गाने की रिकॉर्डिंग के लिए तैयार हो गईं. आपको वो गाना सुनाते हैं और फिर बताएंगे कि आखिर क्या वजह थी कि लता मंगेशकर ने आरडी के गाने की रिकॉर्डिंग के लिए हामी भरी.

घर आजा घिर आए बदरा सावंरिया, इस गाने को शैलेंद्र ने लिखा था. लता मंगेशकर क्यों इस गाने की रिकॉर्डिंग के लिए तैयार हुईं इसकी दिलचस्प कहानी है. दरअसल, आरडी बर्मन जब 15-16 साल के थे तो एक रोज वो महालक्ष्मी स्टूडियो में लता मंगेशकर से ऑटोग्राफ लेने पहुंच गए. उस वक्त आरडी बर्मन ने शर्ट और शॉर्ट्स पहन रखी थी. लता जी आरडी बर्मन को जानती थीं. उन्होंने सुना था कि आरडी बहुत शरारती हैं. उन्होंने ऑटोग्राफ तो दिया लेकिन उस पर लिखा, आरडी शरारत छोड़ो. ये दिलचस्प बात है कि ठीक 5 साल बीते थे जब आरडी बर्मन ने बाकयदा संगीत निर्देशक अपने पहले गाने के लिए लता मंगेशकर से संपर्क किया. लता मंगेशकर ना नहीं कर पाईं. उन्होंने ना सिर्फ इस गाने को रिकॉर्ड किया बल्कि पंचम को बहुत सारी कामयाबी की शुभकामनाएं भी दीं. आप इस वीडियो को सुनिए लता जी और आरडी खुद इस वाकये को बता रहे हैं.

https://www.youtube.com/watch?v=hF3Ios15NxA

आरडी बर्मन ने फिल्म छोटे नवाब का ये गाना शास्त्रीय राग मालगुंजी की जमीन पर तैयार किया था. जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया. इस राग की जमीन पर इससे पहले और बाद में भी कई फिल्मी गाने तैयार किए गए, जिसके फैंस ने काफी सराहा. इसमें 1958 में रिलीज फिल्म अदालत का गाना उनको ये शिकायत कि हम, 1966 में आई फिल्म पिकनिक का गाना- बलमा बोलो ना, 1970 में रिलीज फिल्म सफर का जीवन से भरी तेरी आंखें, इसी साल आई फिल्म आनंद का ना, जीया लागे ना तेरे बिना मेरा कहीं जीया लागे ना जैसे गाने सुपरहिट हुए. आइए आपको भी इसमें से कुछ गाने सुनाते हैं.

https://www.youtube.com/watch?v=6VZDEcwcCak

https://www.youtube.com/watch?v=IO3D-JfItCU

इन बेमिसाल फिल्मी गानों के बाद आइए आपको राग मालगुंजी के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं. राग मालगुंजी का जन्म काफी थाट से है. इस राग में दोनों ‘ग’ और दोनों ‘नी’ इस्तेमाल किए जाते हैं. शुद्ध ‘नी’ का प्रयोग काफी कम होता है. इसके अलावा बाकी के सभी स्वर शुद्ध लगते हैं. राग मालगुंजी के आरोह में ‘प’ नहीं लगता है. अवरोह में सभी सात स्वर लगते हैं. इसीलिए इस राग की जाति षाडव-संपूर्ण है. राग मालगुंजी में वादी स्वर ‘म’ और संवादी ‘स’ है. वादी और संवादी स्वरों को लेकर हम ये आसान परिभाषा हमेशा बताते रहे हैं कि किसी भी राग में वादी संवादी स्वर का वही महत्व होता है जो शतरंज के खेल में बादशाह और वजीर का होता है. इस राग को गाने बजाने का समय रात का दूसरा प्रहर माना गया है.

आरोह- ध़ नी सा रे गा S म, ध नी सां

अवरोह- सां, नी ध, प म ग म, ग रे सा

पकड़- ध़ नी सा रे ग, रेगम, ग रे सा

राग मालगुंजी का चलन बागेश्वरी राग से काफी मिलता जुलता है इसलिए इस राग को बागेश्वरी अंग का राग कहा जाता है. इस श्रृंखला में हम राग के शास्त्रीय स्वरूप पर बात करने के बाद आपको बड़े शास्त्रीय कलाकारों के वीडियो भी दिखाते हैं जिससे आपको इस राग को निभाने का अंदाजा लग सके. इस कड़ी में आइए आपको सुनाते हैं बाबा के नाम से मशहूर अलाउद्दीन खान का बजाया राग मालगुंजी. बाबा यूं तो सरोद वादन के लिए विश्वविख्यात थे लेकिन उन्होंने ये राग वायलिन पर बजाया है. उस्ताद अलाउद्दीन खान साहब ने भी भारतीय शास्त्रीय संगीत के मैहर घराने की शुरूआत की थी.

इस नायाब रिकॉर्डिंग के बाद आपको सुनाते हैं ग्वालियर घराने के बेहद प्रतिष्ठित कलाकार पंडित कृष्णराव पंडित का गाया राग मालगुंजी. इस राग में वो ख्याल और तराना सुना रहे हैं. ख्याल के बोल हैं- घर जाने दे. जो तिलवाड़ा ताल में निबद्ध है. इसके बाद एक और वीडियो सितार के दिग्गज कलाकार पंडित निखिल चक्रवर्ती का है, जिसमें उन्होंने भी राग मालगुंजी बजाया है.

राग मालगुंजी की कहानी में इतना ही, अगले हफ्ते एक और शास्त्रीय राग की कहानी और किस्से के साथ हाजिर होंगे.