
80 के दशक के आते-आते साई परांजपे फिल्म इंडस्ट्री का कामयाब चेहरा बन चुकी थीं. 1980 में उनकी फिल्म स्पर्श परदे पर आई. इस फिल्म के लिए उन्हें 1980 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले का नेशनल अवॉर्ड मिल चुका था. सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और सर्वश्रेष्ठ डायलॉग के लिए 1985 में इसी फिल्म को फिल्मफेयर अवॉर्ड से भी नवाजा गया. इसके अगले ही साल उनकी फिल्म आई चश्मे बद्दूर. जिसे दर्शकों की खूब सराहना मिली.
इसके बाद 90 के दशक के आखिरी सालों में सई परांजपे ने एक विवादास्पद फिल्म बनाई. फिल्म का नाम था- साज. ये फिल्म विवादास्पद इसलिए मानी गई क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस फिल्म को प्लेबैक सिंगर लता मंगेशकर और उनकी बहन आशा भोसले की जिंदगी को आधार में रखकर बनाया गया था. फिल्म इंडस्ट्री में एक अच्छा खासा तबका ऐसे लोगों का है जो मानते हैं कि लता मंगेशकर की वजह से आशा भोसले वो नाम नहीं कमा सकीं जिसकी वो हकदार थीं. इस फिल्म के रिलीज होने के बाद आशा भोसले ने कुछ मौकों पर इस फिल्म की आलोचना भी की.
खैर, हम अपने इस कॉलम में संगीत की बातें करते हैं. राग की बातें करते हैं. अपनी कहानियों पर लौटें उससे पहले आपको इस फिल्म की एक क्लिप दिखाते हैं. ध्यान से देखिएगा क्योंकि इस क्लिप को देखने के बाद आपको भी हैरानी होगी.
https://www.youtube.com/watch?v=_65G0Gviq90
समझ गए ना, दरअसल तबला उस्ताद जाकिर हुसैन ने भी इस फिल्म में एक्टिंग की थी. वो इस फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर भी थे. उस्ताद जाकिर हुसैन के अलावा इस फिल्म का संगीत यशवंत देव, भूपेन हजारिका और राजकमल ने मिलकर तैयार किया था. फिल्म में बड़ी बहन का रोल अरुणा ईरानी और छोटी बहन का रोल शबाना आजमी ने किया था. खैर, जब इतने बड़े-बड़े दिग्गज फिल्म के संगीत को तैयार कर रहे हों, फिल्म में दो गायिकाओं की कहानी हो तो फिल्म का संगीत खास होना ही था. जावेद अख्तर ने फिल्म के गीत लिखे थे.
इस फिल्म के गानों में संगीत के शास्त्रीय पक्ष का अच्छा खासा असर था. इसी फिल्म के एक गाने के लिए उस शास्त्रीय राग को आधार बनाया गया. जिसका नाम कम से कम सबने सुना होगा. ये शास्त्रीय राग था- मियां की मल्हार. आइए आपको वो गाना सुनाते हैं. बादल घुमड़ बढ़ आए. इस गीत को कविता कृष्णमूर्ति ने गाया था.
इस फिल्म की रिलीज के बाद आशा भोसले ने फिल्म को खारिज करते हुए कहा था कि जीवन के कुछ किस्सों को बढ़ाचढ़ाकर तीन घंटे की फिल्म में तब्दील कर दिया गया है. राग मियां की मल्हार पर जाने से पहले एक छोटा सा किस्सा उस्ताद जाकिर हुसैन की एक्टिंग पर भी, फिल्म की रिलीज के बाद सई परांजपे ने कहा था कि सिवाय एक सीन के जाकिर हुसैन ने ठीक-ठाक एक्टिंग की थी. जिस एक सीन में सई को जाकिर हुसैन की एक्टिंग नहीं पसंद आई वो सीन था जब जाकिर हुसैन फिल्म में शबाना आजमी को प्रपोज करते हैं. उस्ताद जाकिर हुसैन ने फिल्म साज के अलावा और भी कुछ फिल्मों में एक्टिंग की है. आप वो सीन देखिए, उसके बाद राग मियां की मल्हार पर वापस लौटते हैं.
https://www.youtube.com/watch?v=3pdn1GyTXyQ
राग मियां की मल्हार दरअसल प्रचलित शास्त्रीय रागों में है. इस राग को बनाने का श्रेय तानसेन को जाता है. हिंदी फिल्मों में इस राग पर और भी कुछ गाने बने हैं. संगीतकार वसंत देसाई ने इस राग पर कई गाने कंपोज किए थे. 1956 में आई फिल्म बसंत बहार का गीत- भए भंजना वंदना सुन हमारी भी इसी राग पर आधारित था. जिसे मन्ना डे ने गाया था. 1959 में रिलीज फिल्म सम्राट पृथ्वीराज चौहान का गीत ना ना ना रे बरसो बादल भी इसी राग पर आधारित है. जिसे लता मंगेशकर ने गाया था.
इसके अलावा 1971 में आई फिल्म गुड्डी का लोकप्रिय गीत- बोले रे पपीहरा भी राग मियां की मल्हार पर आधारित है. जिसे वाणी जयराम ने गाया था. संगीत वसंत देसाई का था और गाना लिखा था गुलजार ने. जया बच्चन की ये बतौर अभिनेत्री पहली फिल्म भी थी. आपको जया बच्चन पर फिल्माया गया और राग मियां की मल्हार पर आधारित ये गाना सुनाते हैं.
आइए अब आपको राग मियां की मल्हार के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं. इस राग की उत्पत्ति काफी थाट से मानी गई है. इसके आरोह में सभी सात स्वर लगते हैं. अवरोह में ‘ध’ नहीं लगता है. इसलिए इस राग की जाति संपूर्ण-षाडव है. इस राग में कोमल ‘ग’ और दोनों ‘नी’ का इस्तेमाल किया जाता है. राग मियां की मल्हार का वादी स्वर ‘स’ और संवादी ‘प’ है. इस राग को गाने बजाने का समय आधी रात यानी मध्यरात्रि माना जाता है. आपको राग मियां की मल्हार का आरोह अवरोह बताते हैं.
आरोह- सा रे मा रे, ¬नी ध नी सां
अवरोह- सां नी प म प, ग म रे सा
राग मियां की मल्हार के बारे में और जानकारी के लिए आप एनसीईआरटी का बनाया ये वीडियो भी देख सकते हैं.
मियां की मल्हार के अलावा, मल्हार के और भी कुछ राग चर्चित हैं. सूर मल्हार, गौड़ मल्हार, नट मल्हार, रामदासी मल्हार. फिर भी सबसे ज्यादा प्रचलित राग मियां की मल्हार ही है. इस राग में ज्यादातर बारिश के आने का जिक्र होता है. शास्त्रीय कलाकारों के गाए-बजाए राग मियां की मल्हार से पहले आपको कोक स्टूडियो की एक रिकॉर्डिंग सुनाते हैं. शास्त्रीय राग को एक नए अंदाज में भी सुनिए
आम तौर पर राग के किस्से के अंत में हम आपको विश्वविख्यात शास्त्रीय कलाकारों के वीडियो दिखाते हैं. आज आपको एक ऐसा दुर्लभ वीडियो दिखाते हैं जिसमें देश के दो भारत रत्न कलाकार राग मियां की मल्हार बजा रहे हैं. एक साज का पुजारी, दूसरा सुरों का संत. तानसेन की याद में आयोजित कार्यक्रम में भारत रत्न पंडित रविशंकर का बजाया राग मियां की मल्हार सुनिए और उसके बाद भारत रत्न से ही सम्मानित पंडित भीमसेन जोशी का गाया राग मियां की मल्हार सुनिए.
भारत रत्न से सम्मानित कलाकारों की बात चल रही है तो आपको बताते हैं कि 2016 में एक और भारत रत्न कलाकार उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब का जन्मशताब्दी समारोह चल रहा था. उन्हीं की याद में बनारस में आयोजित कार्यक्रम बनारसिया में पद्मभूषण से सम्मानित कलाकार ठेठ बनारसी पंडित राजन-साजन मिश्र का गाया राग मियां की मल्हार सुनिए
अगले हफ्ते एक और राग और उसकी कहानियों के साथ मिलेंगे.
(फीटर तस्वीर: rediff.com से साभार)