Stand up sorts Review: स्टैंड अप कॉमेडी की शुरुआत भारत में कहां हुई ये कहना ज़रा मुश्किल है लेकिन जॉनी लीवर, केके नायकर और राजू श्रीवास्तव जैसे दिग्गजों को हम सब सुनते आये हैं जब कैसेट्स चला करती थी.ये कॉमेडी हिंदी में हुआ करती थी. स्टेज शो हुआ करते थे और आम ज़िन्दगी की उठापटक, थोड़ी मिमिक्री और थोड़े बहुत जोक्स का सम्मिश्रण होती थी. पिछले करीब एक डेढ़ दशक में स्टैंड अप कॉमेडी बदल गयी है. ये खुले आसमान के नीचे होने वाले गणेशोत्सव से निकल कर अब क्लब्स में, छोटे वेन्यू जैसे रेस्टोरेंट और पब्स में पहुंच गयी है जहां कॉलेज में पढ़ने वाले, कॉर्पोरेट जॉब करने वाले और फुल टाइम लेखक, अपने अपने एक्ट लेकर स्टैंड अप प्रस्तुत करते नज़र आते हैं. इनके विषय भी इन्ही की ज़िन्दगी से निकलते हैं, थोड़ा ऑब्जरवेशन होता है और सबसे बड़ी बात, ये सब शहरी कॉमेडी होती है जो महानगरों में ज़्यादा प्रचलित होती है. कुल जमा, अभिजात्य वर्ग के लिए. अमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर 15-15 मिनिट के स्लॉट में 4 कॉमेडियंस को लेकर “स्टैंडअप शॉर्ट्स” प्रस्तुत किया गया है.
स्टैंड अप शॉर्ट्स क्यों बनाया गया है ये प्रश्न आपके मन में उठ सकता है जो कि लाज़मी है. नेटफ्लिक्स पर एक बड़ा स्टैंडअप कॉमेडी का शो रिलीज हुआ है, और इसी वजह से जल्दी से कुछ बना कर उसका उत्तर देने की कोशिश जा रही होगी. 4 स्टेंडअप कॉमेडियन – श्रीजा चतुर्वेदी, आदर मलिक, राम्या रामप्रिय, शंकर चुगानी ने मिल कर देश में फैले स्टीरियोटाइप्स का मज़ाक उड़ाने की आधी अधूरी कोशिश की है. हर स्लॉट में कुछ कुछ अच्छा है और कुछ कुछ बिलकुल ही भद्दा मजाक है.
शुरुआत होती है श्रीजा चतुर्वेदी के सेट से. उत्तर प्रदेश के स्टीरियो टाइप पर टिप्पणी करने के लिए श्रीजा खुद का मज़ाक उड़ाना शुरू करती हैं. दुर्भाग्य ये है कि कॉमेडी का स्तर थोड़ा ओछा हो जाता है. लखनऊ में पैदा हुई और मुंबई में काम करने वाली श्रीजा एडवरटाइजिंग से स्टैंडअप में पहुंची हैं. उनकी विशेषता है कि वो खुद बहुत ही कम हंसती है और स्ट्रैट फेस कॉमेडी करने में विश्वास रखती हैं. उत्तर प्रदेश में किस तरह से लड़कियों को ट्रीट किया जाता है, लड़कों द्वारा और लड़कियों द्वारा, उस पर फोकस रख कर वो कहती है कि वो किसी भी लड़के के छेड़ने को बुरा नहीं मानती बल्कि वो और बढ़ावा देती हैं ताकि उसके मन की इच्छाएं ख़त्म हो जाएं. मुद्दा सटीक है, विषय भी बहुत तीखा है लेकिन खुद को केंद्र में रख कर श्रीजा, बात को थोड़ा सतही कर देती हैं. हालाँकि कॉमेडी में ये जायज़ है और इतनी स्वतंत्रता तो होनी ही चाहिए, फिर भी लगता है कि खुद को चालू लड़की साबित करने की उनकी ये कवायद, कच्ची है. थोड़ा मज़ा आया, लेकिंन पूरे 15 मिनिट तक तार जुड़े नहीं रहे.
अगला सेट शंकर चुरानी का है. खुद को नीचा दिखाने की कोशिश में कामयाब हुए हैं. शंकर एक प्रतिभाशाली कॉमेडियन हैं. गालियों के बगैर भी कॉमेडी भी हो सकती है ये देखना है तो शंकर का सेट देख सकते हैं. महिलाओं के नाम के अंत में हमेशा स्वर आता है और पुरुषों के अंत में, गारंटी नहीं है इसलिए लड़कियों के नाम ज़ोर से लिए जाएं तो सिर्फ स्वर सुनाई देता है बहुत अच्छा ऑब्जरवेशन है. इसके बाद शंकर कहते हैं कि विदेशियों के लिए भारत, मसालों का देश है. जब वो आये थे तो उन्होंने कहां कि मसालों के साथ लड़कियों को क्यों जला रहे हैं. इस तरह की बातों के ज़रिये देश की कुरीतियों पर नज़र रखने वाले शंकर ने अच्छे कटाक्ष किये हैं. शंकर अंग्रेजी बोलते हैं इसलिए थोड़ा कठिन लग सकता है लेकिन उनका व्यंग्य बहुत अच्छे किस्म का है और किसी तरह घटिया भाषा या गालियां नहीं होती।
इसके बाद बारी आयी रम्या रामप्रिया की जिन्होंने ‘फन’ विषय पर अपनी बात कही. इनकी भाषा बहुत शहरी है. अर्बन स्टैंडअप कॉमेडी की विडम्बना है कि इसमें स्लैंग, गालियां और बेइज़्ज़ती की भरमार होती है. अपने आप को “फन” शख्सियत साबित करने का भरपूर प्रयास करते हुए रम्या ये भूल जाती हैं कि बिना स्लैंग का इस्तेमाल किये भी कॉमेडी की जा सकती है. इनकी कॉमेडी में नयापन इसलिए नहीं है क्योंकि मुंबई या दिल्ली में इस तरह की लड़कियां नज़र आ जाती हैं. खुद को तमिल ब्राम्हण बता कर उन्हीं पर मज़ाक करने का उनका प्रयास भी ठंडा रहा क्योंकि अधिकांश कॉमेडियंस की ही तरह ये डोसा, चटनी, कॉफ़ी, मंदिर के आगे सोच नहीं पायी हैं. इसके अलावा वे खुद अपने आप को बेचारा दिखाती हैं जबकि जिस अंदाज में वो प्रस्तुत करती हैं वो किसी तरीके से बेचारा नहीं लगता. इनके सेट के अंग्रेजी सब टाइटल में कई ऐसे शब्द हैं जो छुपाये गए हैं. काश कोई इन्हें समझा सकता कि अंग्रेजी में गालियां दे कर कॉमेडी करने का तरीका पुराना है और अब स्वीकार्य भी नहीं हैं.
इस शो का आखिरी सेट सबसे बढ़िया है क्योंकि इसे प्रस्तुत किया है ‘आदर मलिक’ ने. संगीतकार अनु अनु मलिक के भतीजे और संगीतकार अबू मलिक के बेटे आदर स्टैंडअप कॉमेडी में जाना माना नाम हैं और इसीलिए इनका सेट सबसे आखिर में रखा गया है. आदर ने अपना सेट अपनी दादी को समर्पित किया है. दुर्भाग्य से आदर की दादी ये सेट देखने के लिए ज़िंदा नहीं रही. गालियां इसमें भी हैं, सेट हिंदी और अंग्रेजी में हैं. अपनी मुस्लिम दादी के नमाज़ का मज़ाक उड़ाते हुए आदर ने समा बांध दिया। अपनी दादी को समझाते हैं कि वो कॉमेडियन हैं और दादी कहती हैं की मतलब बेरोज़गार. टॉर्न जीन्स पर दादी का कहना है कि अमीर भी अब फकीरों के कपडे पहनते हैं, कितने बुरे दिन हैं. आम ज़िन्दगी की छोटी छोटी बातों पर इस तरह का मज़ाक हंसाता है. दादी की आईसीयू यात्रा भारी भरकम बिल पर उनका व्यंग्य मजेदार था. आदर का ये इमोशनल सेट नहीं होता तो शायद ये पूरा शो बोरियत से भरा रह जाता. आदर बस गालियां देना बंद कर दें तो उनकी कॉमेडी एकदम अव्वल दर्ज़े की है.
इस तरह के शोज में निर्देशक का कोई खास काम नहीं होता. चूंकि ये सेट लाइव शूट होते हैं तो एडिटिंग में भी बहुत जम गुंजाईश होती है और कोई विशेष काम नहीं है. कुल जमा प्रस्तुति में से आदर मलिक और थोड़ा बहुत शंकर को हटा दिया जाए तो ये पूरा शो समय का दुरूपयोग है. इन्हीं दो सेट को देखिये शायद कुछ मजा आये.
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