The stories of patiala royal family to which punjab ex chief minister amrinder singh connected

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आजादी से पहले देश में जो धनी रियासतें थीं, उसमें पटियाला राजघराना सबसे ऊपर था. इस राजघराने की शानोशौकत, वैभव, बहादुरी, रानियों के इतने किस्से हैं कि पूछिए मत. इस राजघराने की शुरुआत 1695 में पहले महाराजा बाबा अली सिंह से होती है. आखिरी महाराजा यादवेंद्र सिंह थे. जो आजादी से पहले 1938 में महाराजा बने. उन्होंने आजादी के समय पटियाला प्रिंसले रियासता का विलय भारत में किया. फिर वो पंजाब के राजप्रमुख पद पर रहे. ये ऐसा घराना है, जिसने पहली बार देश में प्राइवेट प्लेन खरीदा. रोल्स रॉयल कारों का काफिला उनके पास था. एक से एक महल. छुट्टियां विदेशों में बीतती थी. इस राजघराने के किस्से तो इतने और इतनी तरह के हैं कि सुनने वाला प्रभावित हो जाएगा और हैरत में आ जाएगा.

पटियाला राजघराने के पास अगर बेहिसाब संपत्ति थी तो बेशकीमती हीरे-जवाहरात और रत्नाभूषण भी. पटियाला रियासत का इलाका भी समय के साथ काफी दूर तक बढ़ता चला गया था. माना जाता है कि ये ऐसा राजघराना है जो हमेशा अपने इर्द-गिर्द तरह तरह के प्रोफेशनलों, विद्वानों, अनुभवी मिनिस्टरों और उच्चाधिकारियों की नियुक्ति करता था.

देश का पहला प्राइवेट प्लेन खरीदा
महाराजा भूपिंदर सिंह देश के पहले शख्स थे, जिनके पास अपना प्राइवेट प्लेन था. महाराजा ने पटियाला में इसके लिए हवाई पट्टी बनवाई थी. उन्होंने इससे बहुत सी यात्राएं कीं. उन्होंने इस जहाज को ब्रिटेन से 1910 में खरीदा था. तब तक देश की किसी भी रियासत के पास अपना जहाज नहीं था. हालांकि इसके बाद कई रियासतों ने अपने प्राइवेट प्लेन खरीदे.

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महाराजा पटियाला ने देश का पहला प्राइवेट प्लेन खरीदा था. ये तीन सीटर विमान उस जमाने के बेतरीन विमानों में गिना जाता था. पटियाला में इसके लिए एक हवाई पट्टी थी.

महाराजा के प्राइवेट प्लेन के रखरखाव के लिए पूरा स्टाफ था. उसका पायलट विदेशी था. उसको मोटी सेलरी मिलती थी. भूपिंदर को जहाज और कारों का बहुत शौक था. तीन सीटों वाला ये छोटा सा विमान हैविलेंड पस मोट मोनोप्लेन था. ये 140 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ सकता था, ये उस दौर के सबसे बेहतरीन जहाजों में गिना जाता था.

विदेश जाते थे तो पूरा होटल किराए पर लेते थे
महाराजा की लाइफ स्टाइल ऐसी थी कि अंग्रेज भी उनसे रश्क करते थे. वो जब विदेश जाते थे तो पूरा का पूरा होटल किराए पर लेते थे. फिर वो जब तक विदेश में रुका करते थे. पूरा होटल उनके कब्जे में रहता था. उनका स्टाफ आमतौर पर ग्राउंड फ्लोर और ऊपर की मंजिल पर रुकता था. महाराजा और उनकी रानियां पहले फ्लोर पर. साथ में उनकी अपनी सुरक्षा भी वहां काम करती थी. महाराजा के साथ हमेशा बड़ा लावलश्कर विदेश जाया करता था. होटल में महाराजा का एक आफिस भी तैयार हो जाता था, जहां से वो मंत्रियों की मदद से अपना काम करते थे.

महाराजा पटियाला भूपिंदर सिंह ने एक बार रोल्स रॉयस कंपनी को नई कारों का आर्डर दिया. कंपनी ने उसको जब कैंसिल कर दिया तो नाराज महाराजा ने अपनी सारी रोल्स रॉयस कारों को कूड़ा गाड़ियों में तब्दील कर दिया.

तब महाराजा ने रोल्स रॉयस को कूड़े की गाड़ी बना दिया
महाराजा भूपिंदर सिंह के पास 44 रोल्स रॉयस थीं जिनमें से 20 रोल्स रॉयस का काफिला रोजमर्रा में सिर्फ राज्य के दौरे के लिए इस्तेमाल होता था. एक बार जब 1930 में उन्होंने कार निर्माता कंपनी को एकदम नई कारों के लिए आर्डर दिया तो कंपनी ने आनाकानी की. महाराजा इससे इतने नाराज हो गए कि उन्होंने अपनी सभी पुरानी रोल्ड रॉयल कारों को कूड़ा गाड़ियां बनाने का आदेश दिया, जो शहर भऱ से कूडा़ इकट्ठा करेंगी.
कंपनी को जब ये बात पता लगी तो उसे तगड़ा झटका लगा. तुरंत आकर ना केवल आर्डर कैंसिल करने के लिए महाराजा से माफी मांगी गई बल्कि कंपनी ने उन्हें नई कारें भी सप्लाई कीं.

हिटलर भी था दोस्त, दी थी एक कार भेंट
महाराजा के पास एक से बढ़कर एक कारें थीं, जिसमें 44 तो रोल्स रॉयस ही थीं. यहां तक हिटलर ने भी महाराजा को एक कार उपहार में थी. ये कार मेबैक कार थी. 1935 में बर्लिन दौरे के वक्त भूपिंदर सिंह की मुलाकात हिटलर से हुई. कहा जाता है कि राजा से हिटलर इतने प्रभावित हो गए कि उसने अपनी मेबैक कार राजा को तोहफे में दे दी. हिटलर से महाराजा की दोस्ती लंबे समय तक रही.

भारतीय क्रिकेट के शुरुआती दिनों पटियाला राजघराने ने टीमों की बहुत मदद की. लाला अमरनाथ और कई क्रिकेटरों को तो पटियाला घराने से मदद भी मिली.

क्रिकेट टीम के विदेशी दौरों के लिए पैसा देते थे
महाराजा भूपिंदर पटियाला घराने के ऐसे राजा रहे हैं. जिनको लेकर बहुत ढेर सारे किस्से हैं. वो भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान भी थे. जब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को खड़ा किया गया, उसमें महाराजा ने मोटा धन दिया. इसके अलावा 40 के दशक तक जब भी भारतीय टीम विदेश जाती थी तो अमूमन उसका खर्च वो उठाया करते थे लेकिन इसके एवज में वो टीम के कप्तान भी बनाए जाते थे.

पूरी आस्ट्रेलियाई टीम अपने खर्चे पर बुला ली
महाराजा बीसीसीआई के संस्थापक लोगों में भी थे. 1930 के दशक में उन्होंने पूरी आस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम अपने प्राइवेट खर्च पर पटियाला बुला लिया था. तब उन्होंने आस्ट्रेलिया की टीम इसके लिए 10,000 पाउंड की मोटी रकम दी थी. बाद में जब एक आस्ट्रेलियाई क्रिकेटर को मैच के दौरान चोट लगी तो उसका महंगा इलाज मुंबई के उस सेंट जार्ज हास्पिटल में कराया गया, जहां केवल अंग्रेज ही अपना इलाज करा सकते थे.

पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह जो अमरिंदर सिंह के ग्रैंड फादर थे, वो वैभवपूर्ण जिंदगी जीते थे. उनकी लाइफ स्टाइल हमेशा चर्चाओं में रहती थी.

10 रानियां और 300 से ज्यादा उपरानियां
दीवान जर्मनी दास ने अपनी किताब “महाराजा” में पटियाला के महाराजा पर विस्तार से लिखा है. लेपियर कोलिंग की “फ्रीडम एट मिडनाइट” में भी महाराजा की सनक और तड़क-भड़क भरी जीवन शैली का विस्तार से जिक्र हुआ है.
महाराजा भूपिंदर सिंह ने दस बार शादियां कीं. इसके अलावा उनके हरम में 300 से ज्यादा उपरानियां थीं. इसमें एक से बढ़कर एक सुंदर महिलाएं थीं, जिसमें कई विदेशी भी थीं. महाराजा ने 88 बच्चे पैदा किए. वो जब भी विदेश जाते थे तो उनके साथ एक बड़ा लावलश्कर भी जाता था. वो लंदन या पेरिस में सबसे मंहगे होटल की कई मंजिलों को एकसाथ किराए पर ले लेते थे. उसका पूरा खर्च वो खुद वहन करते थे.

बीसीसीआई की स्थापना में बड़ी मदद की
महाराजा पटियाला ने बीसीसीआई के गठन के समय तो बड़ा आर्थिक योगदान तो दिया ही. बाद में बोर्ड की हमेशा मदद करते रहे. मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम का एक हिस्सा उनके योगदान से बना था. वह न केवल भारतीय टीम से खेले बल्कि मेरिलबोर्न क्रिकेट क्लब यानी एमसीसी की टीम में भी रहे. उन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश क्रिकेट कोचों को भारत बुलाया. उनके पास अपनी क्रिकेट टीम थी, जो उस समय देश में होने वाले टूर्नामेंटों में खेलती थी, इसमें देश के जाने माने खिलाड़ी खेला करते थे, लाला अमरनाथ भी इसमें शामिल थे.

अमरिंदर सिंह के पिता यादवेंद्र सिंह ने भारतीय क्रिकेट टीम की ओर से एक टेस्ट मैच खेला. वो भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष रहे. वह पटियाला राजघराने के आखिरी महाराजा थे.

सबसे महंगा हीरों का हार
वर्ष 1929 में राजा के ठाठ का एक और उदाहरण सामने आया जब उन्होंने कीमती नग, हीरों और आभूषणों से भरा संदूक पेरिस के कार्टियर ज्वैलर्स को भेजा. लगभग 3 साल की कारीगरी के बाद ​तैयार हुए इस हार ने खूब चर्चा बटोरी. 25 मिलियन डॉलर की कीमत वाला यह हार देश के सबसे महंगे आभूषणों में से एक है.बाद में इस हार को भूपिंदर सिंह के बेटे यादवेंद्र सिंह ने भी पहना लेकिन उसके बाद ये हार गायब हो गया. इसमें लगे हीरे जवाहरात जरूर दुनियाभर के कोने कोने से सामने आते रहे.

पटियाला राजघराने के राजाओं की विदेशी बीवियां
देश में पटियाला राजघराना अकेला ऐसा राजघराना कहा जा सकता है जिसके महाराजाओं ने सबसे ज्यादा विदेशी महिलाओं से शादी की. इसमें एक पर फिल्म भी बनी है. महाराजा जगतजीत सिंह स्पेन की एक डांसर सुंदरी पर मोहित हो गए. उससे उन्होंने शादी की और पटियाला लायक उसे अपनी रानी भी बनाया. बाद में इस प्रेमकथा पर बेस्ट सेलर किताब लिखी गई. हॉलीवुड ने इस पर फिल्म भी बनाई.

ओलंपिक संघ के संस्थापक रहे
महाराजा यादवेंद्र सिंह पटियाला राजघराने के अंतिम महाराजा थे. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह उन्हीं के बेटे हैं. यादवेंद्र लंबे समय तक भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष रहे. देश में जब 1952 में पहली बार एशियाई खेल हुए तो उन्होंने उसमें बहुत योगदान दिया. पटियाला घराना बहुत से खिलाड़ियों और पहलवानों को भी प्रश्रय देता था.

उनके पास विदेशी डॉक्टर, ड्रेसर और आर्किटैक्ट होते थे
पटियाला राजघराना अपनी सेवाओं में मोटी सेलरी देकर विदेशी डॉक्टरों, हेयर ड्रेसर की नियमित सेवाएं लेता था. वो यहीं पटियाला में रहते थे. विदेशी डॉक्टर नियमित तौर पर राजा और रानियों की नियमित जांच करते थे. उन्हें ऐसी दवाएं देते थे कि वो फिट रहें. रानियों की हेयर ड्रेसर विदेशी होती थीं. उनके कपड़े भी विदेश से सिलकर आया करते थे.
पटियाला राजघराने के ज्यादा महलों के रखरखाव और स्टाइलिश फर्नीचरों के लिए विदेशी फर्मों से कांट्रैक्ट किया जाता था. मोटे धन के इस कांट्रैक्ट में महल की साजसज्जा. इंटीरियर, फर्नीचरों में बदलाव और रखरखाव आदि शामिल होता था.

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