World Heart Day: लोगों को हार्ट से जुड़ी बीमारियों के बारे में जागरुक करने के उद्देश्य से वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन (World Heart Fedration) द्वारा हर साल 29 को सितंबर को वर्ल्ड हार्ट डे मनाया जाता है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के साथ मिलकर जिस वक्त इसकी शुरुआत हुई थी, वो साल था 1999. उस वक्त ये तय किया गया था कि सितंबर के आखिरी सप्ताह में वर्ल्ड हार्ट डे मनाया जाएगा, इसलिए पहला वर्ल्ड हार्ट डे 24 सितंबर 2000 को मनाया गया था. लेकिन साल 2011 तक ही ये सिलसिला चला, फिर 2012 के बाद से इस दिवस को 29 सितंबर को मनाया जाने लगा. आज 30-35 साल की उम्र के लोगों को हार्ट से जुड़ी बीमारियां हो रही हैं, ज्यादातर मामलों में तो उन्हें पता ही नहीं चलता है कि शरीर में कौन सी बीमारी घर कर रही है. मामला यहां तक बढ़ जाता है कि डॉक्टर तक पहुंचने की नौबत तक नहीं आती है.
दैनिक जागरण में छपी रिपोर्ट में सीनियर हार्ट स्पेशलिस्ट और मेदांता मेडसिटी गुरुग्राम के चेयरमैन डॉ नरेश त्रेहन (Dr. Naresh Trehan) कहना है कि कि 30 से 35 साल की यंग एज में पूरी तरह से फिट दिखने वाले युवाओं का भी हार्टअटैक की चपेट में आना बेहद चिंता का विषय है. इसके साथ ही ये हमारे सामने कई ऐसे सवाल भी खड़े कर रहा है कि इसका पता कैसे चले? मतलब वो कौन सा तरीका है जिससे ये पता चल सकता है कि किसी भी समय एक ऐसी बीमारी आ सकती है कि हमें डॉक्टर के पास जाने का टाइम भी ना मिले? वौ कौन सी सावधानियां हैं, जिन्हें बरतना चाहिए, शरीर में कौन से वो परिवर्तन हैं जिन्हें इसका संकेत माना जाना चाहिए?
कोरोनरी आर्टरी में ब्लॉकेज
डॉ नरेश त्रेहन के मुबातिक, कोरोनरी आर्टरी में ब्लॉकेज हार्टअटैक और अचानक मौत का प्रमुख कारण होती है. कोरोनरी आर्टरी में अगर ब्लॉकेज हो तो हार्टअटैक और अचानक मौत का खतरा 20 प्रतिशत ज्यादा हो जाता है. उन्होंने बताया कि कई बार ऐसा देखने में आया है कि टेंशन होने पर, एक्सरसाइज करते समय, दौड़ते वक्त अचानक से हार्टअटैक हो जाता है. आपने कई बार सुना होगा कि कोई इंसान रात को बिलकुल ठीक हंसते खेलते हुए सोया था, उसे कोई तनाव या अवसाद नहीं था, लेकिन वो सुबह नहीं उठा. वहीं कई बार ये भी देखने को मिला है कि बिलकुल फिट दिखने वाला 30 साल का व्यक्ति ट्रेडमिल पर दौड़ रहा था, अचानक उसकी मौत हो गई. तो ये सब अचानक से नहीं होता है, कहीं ना कहीं पहले से उन्हें कोई परेशानी रही होगी, जिसका उन्हें पता नहीं चला.
यह भी पढ़ें- World Heart Day: स्किन दे सकती है हाई कोलेस्ट्रॉल का सिग्नल, इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज
भारत में हार्ट डिजीज की दर
भारत में हार्ट से जुड़ी बीमारियं के खतरे की अगर बात करें, तो ये वेस्टर्न कंट्रीज (पश्चिमी देशों) की तुलना में कहीं ज्यादा है. जहां अमेरिका जैसे देश में 4-5 फीसद लोग हार्ट डिजीज से पीड़ित हैं, वहीं भारत में ये संख्या 10 से 12 फीसद है. बात इतनी सी ही नहीं है, अमेरिका की तुलना में भारत में हार्ट डिजीज 10 साल कम उम्र में ही हो जाती है. मतलब साधारण भाषा में कहें, तो अमेरिका में हार्ट डिजीज उम्र 50-60 वर्ष के बीच की होती है, वहीं भारत में 40-50 साल के बीच में ही दिल से जोड़े रोग व्यक्ति को अपनी चपेट में ले लेते हैं. ऐसे में फिर स्टेंट या बाइपास सर्जरी द्वारा इलाज किया जाता है.
डायबिटीज है तो अलर्ट हो जाएं
डॉ त्रेहन के मुताबिक, नॉर्मली देखें तो हार्ट डिजीज का रिस्क 5 प्रतिशत होता है, लेकिन अगर माता-पिता को कई बीमारी है, तो इसका रिस्क ज्यादा रहता है. जैसे डायबिटीज के मरीजों में कोरनरी आर्टरी ब्लॉकेज का रिस्क ज्यादा रहता है. अगर माता-पिता में से किसी एक को डायबिटीज है तो बच्चों में डायबिटीज होने की संभावना 25 प्रतिशत रहता है. और अगर माता-पिता दोनों को ये बीमारी है तो फिर बच्चों में इसके होने की संभावना 50 प्रतिशत हो जाती है.
यह भी पढ़ें- World Heart Day: बिना लक्षणों के आखिर कैसे पहचानें हार्ट डिजीज? जानें एक्सपर्ट डॉ नित्यानंद त्रिपाठी की राय
जरूरी हैं ये टेस्ट
30 की उम्र के बाद एक्जेक्टिव हेल्थ चेकअप करवा लें. ये एक कंपलीट हेल्थ चेकअप होता है. जिससे रिस्क फैक्टर्स का पता चल जाता है. कॉलेस्ट्रॉल हाई तो नहीं है, ब्लड में फैट तो नहीं है, बीपी का लेवल, थाइरॉयइड का लेवल आदि इसमें पता चल जाता है. अगर फैमिली में किसी को बीपी-शुगर की हिस्ट्री है तो टेस्ट 25 साल में ही करवा लेने चाहिए.
सीटी एंजियो (CT angiography)
अगर आपके टेस्ट में कुछ खराबी के संकेत मिलते हैं. या फिर कोई फैमिली हिस्ट्री है, सीने में दर्द या कोई अन्य परेशानी है, तो इसके बाद इसमें सीटी एंजियोग्राफी (CT angiography) द्वारा बॉडी की स्क्रिनिंग की जाती है. बीमारी का पता चलते ही इलाज शुरू कर दिया जाता है, दवाइयों, पहरेज और एक्सरसाइज से इसमें फायदा मिलता है.
ब्रैडीकार्डिया से बचें
ये हार्ट बीट से जुड़ा मामला है. मतलब कि हमारी हार्ट बीट की दर अगर 70 से 84 तक होती है, तो ये सामान्य मानी जाती है. लेकिन अगर ये 90 की तरफ जाए तो इसे फास्ट माना जाएगा. अगर धड़कन कम होती है ब्रैडीकार्डिया की सिचुएशन आती है, इसमें क्या होता कि हार्ट ब्लड को आसानी से पंप नहीं कर पाता है. लेकिन कई बार ये ब्लड प्रेशर या अन्य किसी बीमारी की दवाओं से भी हो जाता है.
ऐसी स्थिति में फिर इलेक्ट्रिकल सिस्टम की जांच की जाती है, जिसे मेडिकल भाषा में इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी कहा जाता है. इस टेस्ट में कई एक्टिविटी के दौरान हार्ट बीट्स के बीच के गैप को जांचते हैं. अगर गैप 3 सेकंड से ज्यादा है तो इसे खतरनाक मानते हैं. ऐसे में कई बार पीड़ित कंपलीट हार्ट ब्लॉकेज में जा सकते हैं, जिसका इलाज पेसमेकर लगाकर ही किया जाता है.
सर्तक हो जाएं
– अगर आप टेंशन में चिल्ला रहे हैं और सीने में दवाब, दर्द और गले में रुकावट जैसा फील हो रहा है, तो सतर्क हो जाएं. लेकिन ये संकेत डायबिटीज के मरीजों में नहीं मिलते हैं. क्योंकि डायबिटीज में मरीजों की नर्व्स खराब हो जाती है.
– आनुवांशिक रूप से मांसपेशियां मोटी हैं, तो दिक्कत आ सकती है.
लाइफस्टाइल में चेंज जरूरी
– रेगुलर एक्सरसाइज को लाइफस्टाइल का पार्ट बनाएं, जॉगिंग करें, ट्रेडमिल या एक्सरसाइज.
– चीनी, व्हाइट राइस, मैदा और आलू से दूरी बनाएं. अगर डायबिटीज है, तो इन्हें तुरंत छोड़ दें.
– दिन में केवल 15 एमएल तेल का ही इस्तेमाल करें.
– फैट वाले बटर का यूज बंद करें
– हर 6 महीने में खाने वाला तेल बदलें
-न्यूट्रीशंस से भरपूर और बैलेंस डाइट लें
– वेट पर कंट्रोल रखें
-स्मोकिंग, अल्कोहल और तंबाकू छोड़ें.
पढ़ें Hindi News ऑनलाइन और देखें Live TV News18 हिंदी की वेबसाइट पर. जानिए देश-विदेश और अपने प्रदेश, बॉलीवुड, खेल जगत, बिज़नेस से जुड़ी News in Hindi.